Sunday 27 December 2015

पीरियड्स के दौरान ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने के कारण

कुछ महिलाओं को पीरियड्स के दौरान ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होती है, इससे उन्‍हे काफी दिक्‍कत होती है, इस समस्‍या को मेडिकल लैंग्‍वज में मेनोर्रहाजिया कहा जाता है। कभी - कभी पीरियड्स के दौरान ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होना सामान्‍य है लेकिन अगर ऐसा हर महीने होता है तो आपको उसे इग्‍नोर नहीं करना चाहिए। ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने का पता पूरे दिन में इस्‍तेमाल किए जाने वाले पैड से पता लगाया जा सकता है। मेनोर्रहाजिया से पीडि़त महिला को लगभग हर घंटे में पैड या टैम्‍पोन बदलने की आवश्‍यकता पड़ती है और पूरे सप्‍ताह में उसे बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होती है। यहां पीरियड्स के दौरान ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने के कुछ कारण बताएं जा रहे है :

1) हारमोन्‍स में असंतुलन होना 
पीरियड्स के दौरान शरीर के हारमोन्‍स में परिवर्तन होते है, यह काफी सामान्‍य है। ऐसे में किसी - किसी के शरीर में यह परिवर्तन तेजी से होते है और किसी के शरीर में बेहद सामान्‍य तरीके से। हारमोन्‍स में असामान्‍य तरीके से परिवर्तन होना भी ज्‍यादा ब्‍लीडिंग का एक कारण होता है। मेनोपॉज से एक वर्ष पहले हारमोन्‍स में सबसे ज्‍यादा असंतुलन होता है, ऐसे में ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होना नॉमर्ल है लेकिन फिर भी अपनी गॉयनोकोलॉजिस्‍ट से सम्‍पर्क कर लें। कई बार ज्‍यादा मात्रा में गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करने से भी ऐसी समस्‍या आ जाती है।

2) गर्भाशय में फाइबर ट्यूमर होना 
ध्‍यान दें कि गर्भाशय यानि यूट्रेस में फाइबर ट्यूमर होने से भी पीरियड्स के दौरान ज्‍यादा खून आ सकता है। ऐसा अधिकाशत: 30 या 40 की उम्र के बाद होता है। हालांकि, अभी तक गर्भाशय में फाइबर ट्यूमर होने का कारण पता नहीं चल पाया है। कुछ ऑपरेशन और इलाज के द्वारा इस ट्यूमर को गर्भाशय से निकाल दिया जाता है जैसे - मॉयमेक्‍टॉमी, एंडोमेटरियल एबलेशन, यूट्रिन आर्टरी एमबेलीजेशन और यूट्रिन बैलून थेरेपी आदि। हाइस्‍टेरेक्‍टॉमी से भी गर्भाशय का ट्यूमर निकाला जाता है। अगर एक बार मेनोपॉज शुरू हो जाता है तो ट्यूमर स्‍वत: बिना इलाज के ही छोटा होता जाता है और बाद में पूरा गायब हो जाता है।

3) सरवाइकल पॉलीप्‍स 
सरवाइकल पॉलीप्‍स छोटे होते है जो सरवाइकल म्‍यूकोसा या एंडोसेरविकल कनॉल और गर्भाशय के मुहं पर हो जाते है, इनके बनने से भी पीरियड्स के दौरान ब्‍लीडिंग ज्‍यादा होती है। इनके बनने का कारण अभी तक स्‍पष्‍ट नहीं है लेकिन मेडिकल वर्ल्‍ड में इनके बनने की वजह सफाई का न होना और संक्रमण माना जाता है। इनके बनने से शरीर में एस्‍ट्रोजन की मात्रा बॉडी में असामान्‍य तरीके से बढ़ जाती है और गर्भाशय ग्रीवा में रक्‍व वाहिकाओं में रूकावट पैदा होती है जिससे ब्‍लीडिंग ज्‍यादा होती है। सरवाइकल पॉलीप्‍स से पीडित होने वाली अधिकाशत: वह महिलाएं होती है जो 20 से कम उम्र में ही मां बन जाती है। इसका इलाज संभव है।

4) एंडोमेट्रियल पॉलीप्‍स 
एंडोमेट्रियल पॉलीप्‍स, कैंसर का प्रकार नहीं है। य‍ह सिर्फ गर्भाशय की सतह पर उभरता या पनपता है। इसके बनने का कारण भी अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है लेकिन इसका इलाज कई विधियों से चिकित्‍सा जगत में संभव है। इसके बनने से बॉडी में एस्‍ट्रोजन या अन्‍य प्रकार के ओवेरियन ट्यूमर बन जाते है।

5) ल्‍यूपस बीमारी 
ल्‍यूपस एक प्रकार की क्रॉनिक सूजन होती है जो शरीर के विभिन्‍न हिस्‍सों जैसे - त्‍वचा, जोड़ो, खून और किड़नी आदि में हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह बीमारी आनुवाशिंक गड़बड़ी के कारण होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पर्यावरणीय कारक, संक्रमण, एंटीबायोटिक यूवी लाइट्स, तनाव होना, हारमोन्‍स में गड़बडी और दवाओं का ज्‍यादा सेवन इसके होने के प्रमुख कारण होते है।

6) पेल्विक इंफ्लेमेट्री डिसीज ( पीआईडी ) 
यह एक प्रकार का संक्रमण होता है जो एक या एक से अधिक अंगों में हो सकता है जैसे - यूट्रस, फेलोपियन ट्यूब्‍स और सेरेविक्‍स। पीआईडी मुख्‍य रूप से सेक्‍स सम्‍बंधी संक्रमण के कारण होता है। पीआरपी ट्रीटमेंट को एंटीबॉयोटिक थेरेपी के रूप में सजेस्‍ट किया जाता है।

7) सरवाइकल कैंसर 
सरवाइकल कैंसर में गर्भाशय, असामान्‍य और नियंत्रण से बाहर हो जाता है। इसके होने से शरीर के कई हिस्‍से नष्‍ट हो जाते है। 90 प्रतिशत से ज्‍यादा सरवाइकल कैंसर, ह्यूमन पेपिलोमा वायरस के कारण होता है। इसके उपचार के दौरान मरीज की सर्जरी करके उसे कीमोथेरेपी और रेडियशन दिया जाता है, इस बीमारी का इलाज संभव है।

8) एंड्रोमेट्रियल कैंसर 
एंड्रोमेट्रियल कैंसर मुख्‍य रूप से 50 वर्ष से अधिक आयु वाली महिलाओं को होता है। इसके उपचार में सबसे पहले गर्भाशय को ऑपरेशन करके निकाल दिया जाता है। इस बीमारी की शिकायत होने पर तुरंत चिकित्‍सक ही सलाह लें और जल्‍द से जल्‍द उपचार करवाएं। इस प्रकार के कैंसर में कीमोथेरेपी और रेडियशन भी किया जाता है।

9) इंट्रायूट्रिन डिवाइस ( आईयूडी ) 
अगर किसी महिला को ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होती है तो उसे इंट्रायूट्रिन डिवाइस होने का खतरा सबसे ज्‍यादा होता है। अगर ऐसा हो, तो अन्‍य मैचों से आईयूडी कॉट्रासेप्टिव तरीके को बदल देना चाहिए।

10) ब्‍लीडिंग डिसआर्डर 
ब्‍लीडिंग डिस्‍आर्डर के अंर्तगत खून के थक्‍के जमने के कारण ज्‍यादा मात्रा में ब्‍लीडिंग होती है। राष्‍ट्रीय ह्दय फेफड़े और रक्‍त संस्‍थान के अनुसार, ब्‍लीडिंग डिस्‍आर्डर को वॉन विलेब्रांड बीमारी कहा जाता है। जो महिलाएं खून को पतला करने वाली दवा का सेवन करती है वह इस बीमारी से अकसर ग्रसित हो जाती है।

पीरियड्स के दौरान भारी ब्‍लीडिंग हो तो अपनाएं ये घरेलू उपचार

अधिकतर महिलाओं में पीरियड्स के समय अत्यधिक ब्‍लीडिंग की समस्‍या हो जाती है, जिसके चलने उनके शरीर में खून की कमी हो जाती है। इस समस्‍या से निजात पाने के लिये अगर आप हार्मोनल दवाइयां लेती हैं, तो उसे बंद कर के असरदार घरेलू उपचारों का सहारा लेना चाहिये।

अगर आप ने इस समस्‍या को इगनोर करना शुरु कर दिया तो, आप थकान, एनीमिया, मूड स्‍विंग और यहां तक कि सर्वाइकल कैंसर की भी शिकार हो सकती हैं। अत्‍यधिक ब्‍लीडिंग होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे, हार्मोनल असंतुलन, फाइब्रॉएड, पेल्‍विक में सूजन, थायराइड आदि। लेकिन अगर आपको कोई बीमारी नहीं है और फिर भी ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होती है, तो उसका कारण दवाइयों का सेवन भी हो सकता है।

यदि आपको इन घरेलू उपचार के उपयोग से भी लाभ नहीं मिल रहा है और रक्तस्राव 7 दिनों से अधिक होता ही चला जा रहा है तो, आपको तुरंत ही स्‍त्री रोग विशेषज्ञ के पास जाना चाहिये।
साबुत धनिया 
आधे गिलास पानी में थोड़ी सी साबुत धनिया उबालिये। जब पानी हल्‍का ठंडा हो जाए, तब इसे वैसे ही पी जाएं। इससे आप आपको काफी फायदा होगा।

इमली 
इसमे फाइबर और एंटीऑक्‍सीडेंट्स हेाते हैं, जो खून को जमा देते हैं और ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने से रोकते हैं। अगर आपको लगे कि बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग हो रही है, तो एक इमली का टुकड़ा जरुर खा लें।

सिट्रस फल 
विटामिन सी, ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने से रोकता है। मासिक धर्म के समय आप संतरे का जूस दिन में दो बार पी सकती हैं।

ब्रॉक्‍ली 
 हरी सब्‍जियों में विटामिन के होता है, जो ब्‍लड को जमने में मदद करते हैं। इसलिये जब ज्‍यादा ब्‍लीडिंग हो तो, अपने आहार में ढेर सारी हरी पत्‍तेदार सब्‍जियां शामिल करें।

मूली 
मूली बडी ही आसानी से खून को जमाती है। मूली पकाते वक्‍त , इसमें मूली के पत्‍ते भी जरूर डालें। इस सब्‍जी को पीरियड्स के समय जरुर खाएं जिससे ब्‍लड फ्लो कंट्रोल में रहे।
पपीता 
वैसे तो पपीता पीरियड्स होने में मदद करता है। लेकिन कच्‍चे पपीते के सेवन से पीरियड्स के दिनों में ज्‍यादा ब्‍लड फ्लो नहीं होता। इन दिनों में आप कच्‍चे पपीते के दो पीस खा सकती हैं।

आमला 
आमला या आमले का जूस, भारी ब्‍लीडिंग को रोकता है। इस जूस को दिन में दो बार पियें और इस समस्‍या से हमेशा के लिये छुट्टी पाएं। जूस पीने के बाद थोड़ा सा नमक जरुर चख लें, जिससे आपका गला खराब ना हो।

सौंफ 
आधे गिलास गरम पानी में मुठ्ठी भर सौंफ भिगोइये। फिर इस पानी को सौंफ सहित ही खाली पेट पी जाइये।

राई 
40 ग्राम राई को पीस कर पावडर बना लें। 2 ग्राम राई पावडर ले कर उसे दूध के साथ दिन में दो बार खा लें।

दालचीनी 
दालचीनी के टुकड़े को खौलते पानी में डाल कर पियें। या फिर दालचीनी का टिंचर भी दिन में दो बार, 3 ड्रॉप ले सकती हैं।

करेला 
इस सब्‍जी को खाने से भी काफी लाभ मिरला है। यह सब्‍जी हैवी ब्‍लीडिंग को कंट्रोल कर सकती है।

एलोवेरा 
एलोवेरा जूस दिन में दो बार पियें। इससे भी समस्‍या दूर होगी।
अदरक 
आप अदरक को पानी में उबाल कर काढ़ा बना कर पी सकती हैं। इसके टेस्‍ट को बदलने के लिये इसमें शक्‍कर या शहद मिला लें। इसे दिन में तीन बार खाना खाने के बाद पियें।

कैसी हो डाइट 
आपकी डाइट में ज्‍यादातर विटामिन और मिनरल्‍स जैसे, मैग्‍नीशियम, आयरन और कैल्‍शियम होने चाहिये। डाइट में ढेर सारे ताते फल और हरी सब्‍जियां शामिल करें।

पीरियड्स में भूल कर भी ना करें ये काम नहीं तो बढ़ जाएगी परेशानी

हाल के अध्ययन में एक बात सामने आई है कि वे महिलाएं जो मासिक धर्म से गुज़र रही होती हैं, उन्‍हें पार्टनर से शारीरिक संबन्‍ध बनाने की इच्‍छा काफी तेजी से होती है क्‍योंकि उनके अंदर बहुत ही तेजी से हार्मोन परिवर्तित हो रहे होते हैं। इसी तरह से महिलाओं में मूड में बदलाव, पेट के निचले हिस्‍से में दर्द और अन्‍य परेशानियां होती हैं।

कहते हैं कि 90 प्रतिशत महिलाओं को उन दिनों में धैर्यपूर्वक कदम बढ़ाना चाहिये और अपने मूड को ठीक रखना चाहिये। अगर पीरियड्स क्रैंप हैं तो उससे डील करने के लिये घरेलू उपचारों का प्रयोग करना चाहिये।

आज हम आपको ऐसी जरुरी बातें बताएंगे जो पीरियड्स के दिनों में नहीं करनी चाहिये। अगर आप इसे अपनाएंगी तो हमारा यकीन मानिये कि आपको पीरियड्स के दिनों में दर्द और निराशा नहीं झेलनी पड़ेगी। अब आइये जानते हैं कौन सी हैं वे बातें...
 
जिम जाना ना छोड़ें 
वर्कआउट करना बहुत जरुरी है। व्‍यायाम करने से क्रैंप और शरीर का दर्द दूर होता है। अगर आप अपना वर्कआउट छोड़ देंगी तो शरीर में आलस भी जाएगा और क्रैंप बढ़ जाएगा।

डेयरी प्रोडक्‍ट से दूर रहें 
कहते हैं पेट के निचले हिस्‍से के दर्द को दूर करने के लिये कैल्‍शियम बहुत जरुरी है। पर हर डेयरी प्रोडक्‍ट स्‍वास्‍थ्‍यमंद नहीं होते क्‍योंकि ये क्रैंप पैदा करते हैं। इन दिनों आपको बादाम दूध पीना चाहिये क्‍योंकि इसमें ढेर सारा कैल्‍शियम होता है।

भोजन ना छोड़ें 
पीरियड्स में भोजन ना छोड़ें। इससे पेट में एसिडिटी बन सकती है और क्रैंप होने के साथ साथ पेट में गैस और दर्द हो सकता है।

असुरक्षित संभोग 
एक्‍सपर्ट के हिसाब से पीरियड्स के दौरान असुरक्षित संभाग करने से बचें। क्‍योंकि यह अस्वस्थ, गंदी और आपको प्रेगनेंट भी कर सकता है।
 
बहुत ज्‍यादा ना खाएं 
पीरियड्स के दिनों में महिलाएं अक्‍सर बहुत ज्‍यादा खाने लगती हैं। इससे वेट बढ़ता है और आलस आता है।

वैक्‍सिंग ना करवाएं 
पीरियड्स के दिनों में इस्‍ट्रोजन का लेवल धीमा पड़ जाता है, इसलिये बहुत दर्द होता है।

दवाइयां ना खाएं
दर्द को कम करने के लिये बेकार की दवाइयां ना खाएं क्‍योंकि यह हार्मोन पर बुरा असर डालेगा और शरीर पर भी। अच्‍छा होगा कि आप कोई घरेलू उपचार अपनाएं।
 
नमक वाला आहार ना खाएं 
बहुत ज्‍यादा नमकीन वाला खाना खाने से पेट में गैस बनने लगती है और असहजता महसूस होने लगती है।