Sunday 27 December 2015

पीरियड्स के दौरान ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने के कारण

कुछ महिलाओं को पीरियड्स के दौरान ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होती है, इससे उन्‍हे काफी दिक्‍कत होती है, इस समस्‍या को मेडिकल लैंग्‍वज में मेनोर्रहाजिया कहा जाता है। कभी - कभी पीरियड्स के दौरान ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होना सामान्‍य है लेकिन अगर ऐसा हर महीने होता है तो आपको उसे इग्‍नोर नहीं करना चाहिए। ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने का पता पूरे दिन में इस्‍तेमाल किए जाने वाले पैड से पता लगाया जा सकता है। मेनोर्रहाजिया से पीडि़त महिला को लगभग हर घंटे में पैड या टैम्‍पोन बदलने की आवश्‍यकता पड़ती है और पूरे सप्‍ताह में उसे बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होती है। यहां पीरियड्स के दौरान ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने के कुछ कारण बताएं जा रहे है :

1) हारमोन्‍स में असंतुलन होना 
पीरियड्स के दौरान शरीर के हारमोन्‍स में परिवर्तन होते है, यह काफी सामान्‍य है। ऐसे में किसी - किसी के शरीर में यह परिवर्तन तेजी से होते है और किसी के शरीर में बेहद सामान्‍य तरीके से। हारमोन्‍स में असामान्‍य तरीके से परिवर्तन होना भी ज्‍यादा ब्‍लीडिंग का एक कारण होता है। मेनोपॉज से एक वर्ष पहले हारमोन्‍स में सबसे ज्‍यादा असंतुलन होता है, ऐसे में ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होना नॉमर्ल है लेकिन फिर भी अपनी गॉयनोकोलॉजिस्‍ट से सम्‍पर्क कर लें। कई बार ज्‍यादा मात्रा में गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करने से भी ऐसी समस्‍या आ जाती है।

2) गर्भाशय में फाइबर ट्यूमर होना 
ध्‍यान दें कि गर्भाशय यानि यूट्रेस में फाइबर ट्यूमर होने से भी पीरियड्स के दौरान ज्‍यादा खून आ सकता है। ऐसा अधिकाशत: 30 या 40 की उम्र के बाद होता है। हालांकि, अभी तक गर्भाशय में फाइबर ट्यूमर होने का कारण पता नहीं चल पाया है। कुछ ऑपरेशन और इलाज के द्वारा इस ट्यूमर को गर्भाशय से निकाल दिया जाता है जैसे - मॉयमेक्‍टॉमी, एंडोमेटरियल एबलेशन, यूट्रिन आर्टरी एमबेलीजेशन और यूट्रिन बैलून थेरेपी आदि। हाइस्‍टेरेक्‍टॉमी से भी गर्भाशय का ट्यूमर निकाला जाता है। अगर एक बार मेनोपॉज शुरू हो जाता है तो ट्यूमर स्‍वत: बिना इलाज के ही छोटा होता जाता है और बाद में पूरा गायब हो जाता है।

3) सरवाइकल पॉलीप्‍स 
सरवाइकल पॉलीप्‍स छोटे होते है जो सरवाइकल म्‍यूकोसा या एंडोसेरविकल कनॉल और गर्भाशय के मुहं पर हो जाते है, इनके बनने से भी पीरियड्स के दौरान ब्‍लीडिंग ज्‍यादा होती है। इनके बनने का कारण अभी तक स्‍पष्‍ट नहीं है लेकिन मेडिकल वर्ल्‍ड में इनके बनने की वजह सफाई का न होना और संक्रमण माना जाता है। इनके बनने से शरीर में एस्‍ट्रोजन की मात्रा बॉडी में असामान्‍य तरीके से बढ़ जाती है और गर्भाशय ग्रीवा में रक्‍व वाहिकाओं में रूकावट पैदा होती है जिससे ब्‍लीडिंग ज्‍यादा होती है। सरवाइकल पॉलीप्‍स से पीडित होने वाली अधिकाशत: वह महिलाएं होती है जो 20 से कम उम्र में ही मां बन जाती है। इसका इलाज संभव है।

4) एंडोमेट्रियल पॉलीप्‍स 
एंडोमेट्रियल पॉलीप्‍स, कैंसर का प्रकार नहीं है। य‍ह सिर्फ गर्भाशय की सतह पर उभरता या पनपता है। इसके बनने का कारण भी अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है लेकिन इसका इलाज कई विधियों से चिकित्‍सा जगत में संभव है। इसके बनने से बॉडी में एस्‍ट्रोजन या अन्‍य प्रकार के ओवेरियन ट्यूमर बन जाते है।

5) ल्‍यूपस बीमारी 
ल्‍यूपस एक प्रकार की क्रॉनिक सूजन होती है जो शरीर के विभिन्‍न हिस्‍सों जैसे - त्‍वचा, जोड़ो, खून और किड़नी आदि में हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह बीमारी आनुवाशिंक गड़बड़ी के कारण होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पर्यावरणीय कारक, संक्रमण, एंटीबायोटिक यूवी लाइट्स, तनाव होना, हारमोन्‍स में गड़बडी और दवाओं का ज्‍यादा सेवन इसके होने के प्रमुख कारण होते है।

6) पेल्विक इंफ्लेमेट्री डिसीज ( पीआईडी ) 
यह एक प्रकार का संक्रमण होता है जो एक या एक से अधिक अंगों में हो सकता है जैसे - यूट्रस, फेलोपियन ट्यूब्‍स और सेरेविक्‍स। पीआईडी मुख्‍य रूप से सेक्‍स सम्‍बंधी संक्रमण के कारण होता है। पीआरपी ट्रीटमेंट को एंटीबॉयोटिक थेरेपी के रूप में सजेस्‍ट किया जाता है।

7) सरवाइकल कैंसर 
सरवाइकल कैंसर में गर्भाशय, असामान्‍य और नियंत्रण से बाहर हो जाता है। इसके होने से शरीर के कई हिस्‍से नष्‍ट हो जाते है। 90 प्रतिशत से ज्‍यादा सरवाइकल कैंसर, ह्यूमन पेपिलोमा वायरस के कारण होता है। इसके उपचार के दौरान मरीज की सर्जरी करके उसे कीमोथेरेपी और रेडियशन दिया जाता है, इस बीमारी का इलाज संभव है।

8) एंड्रोमेट्रियल कैंसर 
एंड्रोमेट्रियल कैंसर मुख्‍य रूप से 50 वर्ष से अधिक आयु वाली महिलाओं को होता है। इसके उपचार में सबसे पहले गर्भाशय को ऑपरेशन करके निकाल दिया जाता है। इस बीमारी की शिकायत होने पर तुरंत चिकित्‍सक ही सलाह लें और जल्‍द से जल्‍द उपचार करवाएं। इस प्रकार के कैंसर में कीमोथेरेपी और रेडियशन भी किया जाता है।

9) इंट्रायूट्रिन डिवाइस ( आईयूडी ) 
अगर किसी महिला को ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होती है तो उसे इंट्रायूट्रिन डिवाइस होने का खतरा सबसे ज्‍यादा होता है। अगर ऐसा हो, तो अन्‍य मैचों से आईयूडी कॉट्रासेप्टिव तरीके को बदल देना चाहिए।

10) ब्‍लीडिंग डिसआर्डर 
ब्‍लीडिंग डिस्‍आर्डर के अंर्तगत खून के थक्‍के जमने के कारण ज्‍यादा मात्रा में ब्‍लीडिंग होती है। राष्‍ट्रीय ह्दय फेफड़े और रक्‍त संस्‍थान के अनुसार, ब्‍लीडिंग डिस्‍आर्डर को वॉन विलेब्रांड बीमारी कहा जाता है। जो महिलाएं खून को पतला करने वाली दवा का सेवन करती है वह इस बीमारी से अकसर ग्रसित हो जाती है।

पीरियड्स के दौरान भारी ब्‍लीडिंग हो तो अपनाएं ये घरेलू उपचार

अधिकतर महिलाओं में पीरियड्स के समय अत्यधिक ब्‍लीडिंग की समस्‍या हो जाती है, जिसके चलने उनके शरीर में खून की कमी हो जाती है। इस समस्‍या से निजात पाने के लिये अगर आप हार्मोनल दवाइयां लेती हैं, तो उसे बंद कर के असरदार घरेलू उपचारों का सहारा लेना चाहिये।

अगर आप ने इस समस्‍या को इगनोर करना शुरु कर दिया तो, आप थकान, एनीमिया, मूड स्‍विंग और यहां तक कि सर्वाइकल कैंसर की भी शिकार हो सकती हैं। अत्‍यधिक ब्‍लीडिंग होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे, हार्मोनल असंतुलन, फाइब्रॉएड, पेल्‍विक में सूजन, थायराइड आदि। लेकिन अगर आपको कोई बीमारी नहीं है और फिर भी ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होती है, तो उसका कारण दवाइयों का सेवन भी हो सकता है।

यदि आपको इन घरेलू उपचार के उपयोग से भी लाभ नहीं मिल रहा है और रक्तस्राव 7 दिनों से अधिक होता ही चला जा रहा है तो, आपको तुरंत ही स्‍त्री रोग विशेषज्ञ के पास जाना चाहिये।
साबुत धनिया 
आधे गिलास पानी में थोड़ी सी साबुत धनिया उबालिये। जब पानी हल्‍का ठंडा हो जाए, तब इसे वैसे ही पी जाएं। इससे आप आपको काफी फायदा होगा।

इमली 
इसमे फाइबर और एंटीऑक्‍सीडेंट्स हेाते हैं, जो खून को जमा देते हैं और ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने से रोकते हैं। अगर आपको लगे कि बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग हो रही है, तो एक इमली का टुकड़ा जरुर खा लें।

सिट्रस फल 
विटामिन सी, ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने से रोकता है। मासिक धर्म के समय आप संतरे का जूस दिन में दो बार पी सकती हैं।

ब्रॉक्‍ली 
 हरी सब्‍जियों में विटामिन के होता है, जो ब्‍लड को जमने में मदद करते हैं। इसलिये जब ज्‍यादा ब्‍लीडिंग हो तो, अपने आहार में ढेर सारी हरी पत्‍तेदार सब्‍जियां शामिल करें।

मूली 
मूली बडी ही आसानी से खून को जमाती है। मूली पकाते वक्‍त , इसमें मूली के पत्‍ते भी जरूर डालें। इस सब्‍जी को पीरियड्स के समय जरुर खाएं जिससे ब्‍लड फ्लो कंट्रोल में रहे।
पपीता 
वैसे तो पपीता पीरियड्स होने में मदद करता है। लेकिन कच्‍चे पपीते के सेवन से पीरियड्स के दिनों में ज्‍यादा ब्‍लड फ्लो नहीं होता। इन दिनों में आप कच्‍चे पपीते के दो पीस खा सकती हैं।

आमला 
आमला या आमले का जूस, भारी ब्‍लीडिंग को रोकता है। इस जूस को दिन में दो बार पियें और इस समस्‍या से हमेशा के लिये छुट्टी पाएं। जूस पीने के बाद थोड़ा सा नमक जरुर चख लें, जिससे आपका गला खराब ना हो।

सौंफ 
आधे गिलास गरम पानी में मुठ्ठी भर सौंफ भिगोइये। फिर इस पानी को सौंफ सहित ही खाली पेट पी जाइये।

राई 
40 ग्राम राई को पीस कर पावडर बना लें। 2 ग्राम राई पावडर ले कर उसे दूध के साथ दिन में दो बार खा लें।

दालचीनी 
दालचीनी के टुकड़े को खौलते पानी में डाल कर पियें। या फिर दालचीनी का टिंचर भी दिन में दो बार, 3 ड्रॉप ले सकती हैं।

करेला 
इस सब्‍जी को खाने से भी काफी लाभ मिरला है। यह सब्‍जी हैवी ब्‍लीडिंग को कंट्रोल कर सकती है।

एलोवेरा 
एलोवेरा जूस दिन में दो बार पियें। इससे भी समस्‍या दूर होगी।
अदरक 
आप अदरक को पानी में उबाल कर काढ़ा बना कर पी सकती हैं। इसके टेस्‍ट को बदलने के लिये इसमें शक्‍कर या शहद मिला लें। इसे दिन में तीन बार खाना खाने के बाद पियें।

कैसी हो डाइट 
आपकी डाइट में ज्‍यादातर विटामिन और मिनरल्‍स जैसे, मैग्‍नीशियम, आयरन और कैल्‍शियम होने चाहिये। डाइट में ढेर सारे ताते फल और हरी सब्‍जियां शामिल करें।

पीरियड्स में भूल कर भी ना करें ये काम नहीं तो बढ़ जाएगी परेशानी

हाल के अध्ययन में एक बात सामने आई है कि वे महिलाएं जो मासिक धर्म से गुज़र रही होती हैं, उन्‍हें पार्टनर से शारीरिक संबन्‍ध बनाने की इच्‍छा काफी तेजी से होती है क्‍योंकि उनके अंदर बहुत ही तेजी से हार्मोन परिवर्तित हो रहे होते हैं। इसी तरह से महिलाओं में मूड में बदलाव, पेट के निचले हिस्‍से में दर्द और अन्‍य परेशानियां होती हैं।

कहते हैं कि 90 प्रतिशत महिलाओं को उन दिनों में धैर्यपूर्वक कदम बढ़ाना चाहिये और अपने मूड को ठीक रखना चाहिये। अगर पीरियड्स क्रैंप हैं तो उससे डील करने के लिये घरेलू उपचारों का प्रयोग करना चाहिये।

आज हम आपको ऐसी जरुरी बातें बताएंगे जो पीरियड्स के दिनों में नहीं करनी चाहिये। अगर आप इसे अपनाएंगी तो हमारा यकीन मानिये कि आपको पीरियड्स के दिनों में दर्द और निराशा नहीं झेलनी पड़ेगी। अब आइये जानते हैं कौन सी हैं वे बातें...
 
जिम जाना ना छोड़ें 
वर्कआउट करना बहुत जरुरी है। व्‍यायाम करने से क्रैंप और शरीर का दर्द दूर होता है। अगर आप अपना वर्कआउट छोड़ देंगी तो शरीर में आलस भी जाएगा और क्रैंप बढ़ जाएगा।

डेयरी प्रोडक्‍ट से दूर रहें 
कहते हैं पेट के निचले हिस्‍से के दर्द को दूर करने के लिये कैल्‍शियम बहुत जरुरी है। पर हर डेयरी प्रोडक्‍ट स्‍वास्‍थ्‍यमंद नहीं होते क्‍योंकि ये क्रैंप पैदा करते हैं। इन दिनों आपको बादाम दूध पीना चाहिये क्‍योंकि इसमें ढेर सारा कैल्‍शियम होता है।

भोजन ना छोड़ें 
पीरियड्स में भोजन ना छोड़ें। इससे पेट में एसिडिटी बन सकती है और क्रैंप होने के साथ साथ पेट में गैस और दर्द हो सकता है।

असुरक्षित संभोग 
एक्‍सपर्ट के हिसाब से पीरियड्स के दौरान असुरक्षित संभाग करने से बचें। क्‍योंकि यह अस्वस्थ, गंदी और आपको प्रेगनेंट भी कर सकता है।
 
बहुत ज्‍यादा ना खाएं 
पीरियड्स के दिनों में महिलाएं अक्‍सर बहुत ज्‍यादा खाने लगती हैं। इससे वेट बढ़ता है और आलस आता है।

वैक्‍सिंग ना करवाएं 
पीरियड्स के दिनों में इस्‍ट्रोजन का लेवल धीमा पड़ जाता है, इसलिये बहुत दर्द होता है।

दवाइयां ना खाएं
दर्द को कम करने के लिये बेकार की दवाइयां ना खाएं क्‍योंकि यह हार्मोन पर बुरा असर डालेगा और शरीर पर भी। अच्‍छा होगा कि आप कोई घरेलू उपचार अपनाएं।
 
नमक वाला आहार ना खाएं 
बहुत ज्‍यादा नमकीन वाला खाना खाने से पेट में गैस बनने लगती है और असहजता महसूस होने लगती है।


Wednesday 5 August 2015

Chinese Acupressure Points

                                             The Points

For convenience when referring to the points, the abbreviations below are used to refer to them. Also common English descriptions are used instead ot the Chinese names and points. All of these points are tapped about 7 times while repeating the reminder phrase.

Face Points Face Points There are five points on the face, which are tapped from top to bottom, or beginning with the Eye Brow Point (EB). This is at the beginning of the eyebrows, near the nose.

The Side of the Eye Point, (SE) is on the bone at the side of the eye, farthest from the nose.

The next point is on a bone Under the Eye (UE).

The Under the Nose Point is between the bottom of the nose and the top of the lip (UN).

Collar Bone Point From the notch in the middle of the Collar Bones (CB), go down 1 inch and sideways 1 inch to locate this point.

By tapping the Collar Bone Point with all four fingers, you will get the right place.

The collar bone point is not actually on the collar bone but is the start of the collar bone.

Armpit armpit The Armpit Point is about 4 inches below the armpit.
Below Nipple below nipple The Below Nipple Point is just below the male nipple. It is on the crease where the female breast meets the body.
Thumb thumb This point is located at the base of the thumb (TB) nail.
Index Finger indexFinger The Index Finger point is near the base of the nail of the index finger, on the thumb side.
Middle Finger middle finger The Middle Finger Point is near the nail bed on the thumb side of the finger.
Baby Finger baby finger The Baby Finger Point is near the nail bed of the baby finger, on the thumb side
Karate Chop Point karate chop The Karate Chop Point is in the fleshy part of the little-finger side of the hand. It is at the end of the palm crease which you see when the fist is lightly clenched. The Karate Chop Point is tapped vigorously, but not too hard, with the fingers of the opposite hand.

Reminder Phrase

You tap on each of the points below, while repeating the phrase:
Even though I (have this problem), I deeply and completely accept myself.

If you have already been through the process, and the problem is less, you would use the modified reminder phrase:
Even though I (have some of this problem), I deeply and completely accept myself.

The Sequence

The exact order of the sequence is not essential and you can tap points in a different order. Also, when there is a choice of two points (one on each side of the body) if you wish, you can mix and match as you tap.
  1. Eyebrow (EB)
  2. Side of Eye (SE)
  3. Under the Eye (UE)
  4. Under the Nose (UN)
  5. Chin (CH)
  6. Collar Bone (CB)
  7. Armpit
  8. Under the Nipple (UN)
  9. Thumb (TH)
  10. Index Finger (IF)
  11. Middle Finger (MF)
  12. Baby Finger (BF)
  13. Karate Chop Point (KC)
  • Because you tap on each of the points about 7 times with two or more finger, accuracy is not that important because one of the fingers will find the point.
  • You often have the choice of tapping on either side, for instance, using the left hand or the right hand. You can change sides as you wish. It is still as effective. 
  • It is quite easy to remember the points and you should remember them rather than looking at the illustrations because you can then use the technique whenever you like.
  • In many cases, you might use the whole hand to pat firmly in the area. For the collar bone points, using the whole hand and patting the area makes getting the right acupressure points (by applying pressure and by vibration) easier. Even with the finger points, patting the area with the whole hand is effective. 

                               Sore Spot


eft sore spotThe sore spot is about 3 inches down from the notch in the middle of the collar bones, and about 2 inches to the side. (There is one on each side). Within a two inch area, you will find a sore spot. The sore spot is rubbed. It is the only point that isn't tapped. When doing the setup, rub the Sore Spot in an area of about 2 or 3 inches. The point feels sore to begin with, but later may no longer be sore.

You can use the sore spot or the Karate Point in the setup, but the Sore Spot is recommended.

Karate Chop Point


karate chopThe Karate Chop Point is in the fleshy part of the little-finger side of the hand. It is at the end of the palm crease which you see when the fist is lightly clenched. The Karate Chop Point is tapped vigorously, but not too hard, with the fingers of the opposite hand.

Either rubbing the Sore Spot or tapping the Karate Chop Point, you chant 3 times:

Press for headache, depression, Chestpain.


                  The Gamut Point


gamut pointThe Gamut Point is located between the bones of the ring finger and the baby finger, about an inch down from the knuckles. You tap this point with two (or more fingers). You do so vigorously, but not too hard. All the time you repeat the reminder phrase (See above). 

9 Gamut Procedure

While tapping on the Gamut Point, and repeating the reminder phrase, you do the 9 Gamut Procedure, explained below:
  1. Close your eyes.
  2. Open your eyes.
  3. Look hard down to the right.
  4. Look hard down to the left.
  5. Move your eyes clockwise a full circle.
  6. Move your eyes anticlockwise in a full circle. 
  7. Hum a few notes of a song.
  8. Count rapidly from 1 to 5.
  9. Hum about 2 seconds of a song again.


Wednesday 29 July 2015

वास्तु और स्वास्थ्य

वास्तु का भी हमारे जीवन में विशेष प्रभाव रहता है.मानसिक हालत कमजोर होने की स्थिति में हम डिप्रेशन या अवसाद का शिकार हो जाते हैं। ऐसा होने पर व्यक्ति के विचारों, व्यवहार, भावनाओं और दूसरी गतिविधियों पर असर पड़ता है। डिप्रेशन से प्रभावित व्यक्ति अक्सर उदास रहने लगता है, उसे बात-बात पर गुस्सा आता है, भूख कम लगती है, नींद कम आती है और किसी भी काम में उसका मन नहीं लगता। लंबे समय तक ये हालत बने रहने पर व्यक्ति मोटापे का शिकार बन जाता है, उसकी ऊर्जा में कमी आने लगती है, दर्द के एहसास के साथ उसे पाचन से जुड़ी शिकायतें होने लगती हैं। कहने का मतलब यह है कि डिप्रेशन केवल एक मन की बीमारी नहीं है, यह हमारे शरीर को भी बुरी तरह प्रभावित करता है। डिप्रेशन के शिकार किसी व्यक्ति में इनमें से कुछ कम लक्षण पाए जाते हैं और किसी में ज्यादा।

आमतौर पर शरीर में बीमारी होने पर हम उसके बायोलॉजिकल, मनोवैज्ञानकि या सामाजिक कारणों पर जाते हैं। यहां पर आज हम बीमारियों के उस पहलू पर गौर करेंगे, जो हमारे घर के वास्तु से जुड़ा है। कई बीमारियों की वजह घर में वास्तु के नियमों की अनदेखी भी हो सकती है। अगर आप इन नियमों को जान लेंगे और उनका पालन करना शुरू करेंगे तो आपको इन बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है।

  1. जैसे वास्तु में यह माना जाता है कि अगर आप दक्षिण दिशा में सिर करके सोते हैं तो आपके स्वास्थ्य में सुधार होता है। जहां तक करवट का सवाल है तो वात और कफ प्रवृत्ति के लोगों को बाईं और पित्त प्रवृत्ति वालों को दाईं करवट लेटने की सलाह दी जाती है। 
  2. सीढ़ियों का घर के बीच में होना स्वास्थ्य के लिहाज से नुकसान देने वाला होता है, इसलिए साढ़ियों को बीच के बजाय किनारे की ओर बनवाएं। 
  3. इसी तरह भारी फर्नीचर को भी घर के बीच में रखना अच्छा नहीं माना जाता। इस जगह में कंक्रीट का इस्तेमाल भी वास्तु के अनुकूल नहीं होता। दरअसल घर के बीच की जगह ब्रह्मस्थान कहलाती है, जहां तक संभव हो तो इस जगह को खाली छोड़ना बेहतर होता है।
  4.  घर के बीचोबीच में बीम का होना दिमाग के लिए नुकसानदायक माना जाता है। 
  5. वास्तु के नियमों के हिसाब से बीमारी की एक बड़ी वजह घर में अग्नि का गलत स्थान भी है। जैसे कि अगर आपका घर दक्षिण दिशा में है, तो इसी दिशा में अग्नि को न रखें।
  6.  रोशनी देने वाली चीज को दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखना स्वास्थ्य के लिए शुभ माना जाता है। घर में बीमार व्यक्ति के कमरे में कुछ सप्ताह तक लगातार मोमबत्ती जलाए रखना भी उसके स्वास्थ्य के लिए शुभ होता है।
  7. अगर घर का दरवाजा भी दक्षिण दिशा में है, तो इसे बंद करके रखें। यह दरवाजा लकड़ी का और ऐसा    होना चाहिए, जिससे सड़क अंदर से न दिखे।
  8. घर में किचन की जगह का भी हमारे स्वास्थ्य से संबंध होता है। दक्षिण-पश्चिम दिशा में किचन होने से  व्यक्ति अवसाद से दूर रहता है। 
  9. घर के मुख्य द्वार से यदि रसोई कक्ष दिखाई दे तो घर की स्वामिनी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है और उसके बनाए खाने को भी परिवार के लोग ज्यादा पसंद नहीं करते हैं।यदि आपकी रसोई बड़ी है तो आपको रसोई घर में बैठ कर ही भोजन करना चाहिए। इससे कुंडली में राहु के दुष्प्रभावों का शमन होता है।
  10. पूरे परिवार के अच्छे स्वास्थ्य के लिए घर में दक्षिण दिशा में हनुमान का चित्र लगाना चाहिए।
  11. शैया की माप के बारे में विधान है कि शैया की लंबाई सोने वाले व्यक्ति की लंबाई से कुछ अधिक होना चाहिए। पलंग में लगा शीशा वास्तु की दृष्टि से दोष है, क्योंकि शयनकर्ता को शयन के समय अपना प्रतिबिम्ब नजर आना उसकी आयु क्षीण करने के अलावा दीर्घ रोग को जन्म देने वाला होता है।
  12. बेड को कोने में दीवार से सटाकर बिलकुल न रखें। कमरे में दर्पण को कुछ इस तरह रखें, जिससे लेटी अवस्था में आपका प्रतिबिम्ब उस पर न पड़े।
  13. शयनकक्ष में साइड टेबल पर दवाई रखने का स्थान न हो। अनिवार्य दवाई को भी सुबह वहाँ से हटाकर अन्यत्र रख दें।फ्रिज कभी भी बेडरूम में न हो।

गर्भावस्था और खान-पान


१.पनीर युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन करें.
२. यदि आपको मांसाहारी खाने का शौक है तो ३.उबले हुए अंडे, मछली के तेल खाने में लें।
४.पौष्टिक दालें लेना अच्छा रहेगा.
५. फल युक्त सब्जियां नियमित तौर पर लें।
६.  चावल और मोटे अनाज से बना खाना जरूर खाएं
७. हरे पत्तेदार सब्जियां का सेवन सही विकल्प होगा।


जितने पोषण की आवश्यकता प्रसव के दौरान होती है उतनी ही प्रसव के बाद भी होती है। । ऐसे में विटामिन, कैलारी, प्रोटीन युक्त भोज्य पदार्थ खाना अच्छा रहता है। सही खान-पान और नियमित व्यायाम से ही महिला को दुबारा शक्ति हासिल हो सकती है। आइए जानते हैं कि प्रसव के बाद महिलाओं के खान-पान में क्या अंतर होना चाहिए। पहला, गर्भावस्था के बाद महिलाओं के शरीर को अधिक पोषण की जरुरत होती है क्योंकि इसके बाद उनकी दिनचर्या में काफी बदलाव आ जाती है। उन्हें सारा दिन बच्चे के साथ लगा रहना पड़ता है इसलिए उन्हें काफी उर्जा की जरूरत होती है। इस ऊर्जा को पूरा करने के लिए उन्हें साबुत अनाज, दूध , सब्जियों और फलों की सख्त आवश्यक्ता होती है। शुरुआती तौर पर उन्हें ताकत के लिए सूखे मेवे का मिल्क शेक पीना चाहिए। दूसरा, सुबह के वक्त नाश्तें में हल्का खाना लिया जा सकता है। जिसमें इडली, डोसा या फिर ब्रेड सैंडविच खाया जा सकता है। इसके साथ ही ऐसे फल जिनमें एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हों उन्हें भी ग्रहण किया जा सकता है। तीसरा, आप चाहें तो नाश्ते और खाने के बीच में एक कप चाय ले सकती हैं। अगर आप ग्रीन टी लें तो आपके लिए ज्यादा अच्छा होगा। इसी दौरान आप सिंपल स्ट्रेचिंग और हल्का व्याययाम करना अच्छा रहेगा। चौथा, गरम पानी से नहाने के बाद गरम रसम और चावल या फिर मठ्ठा और चावल को एक साथ मिला कर खाएं। इससे ताकत बनी रहती है। खाना खाने के बाद स्वाद बदलने के लिए एक मीठा पान खा सकती हैं। इसको खाने से आपको खनिज प्राप्ती होने के साथ साथ अच्छी् नींद भी आएगी। पांचवां, शाम के समय रोज टहलने जाएं और वापस आने के बाद नारियल पानी, गाजर का जूस, तरबूज का जूस अवश्ये पीएं जिससे कि शरीर में पानी की पूर्ती होती रहे। छठा, रात में थोडा हल्का भोजन करें, इस दौरान आप सूप, हरी पत्ते दार सब्जियां, दही इत्यादि को अपने भोजन में शामिल कर सकती हैं। गर्भावस्था के बाद गेहूं, अनाज, दाल का पानी, दालें इत्यादि खाना बहुत अच्छा रहता है व बच्चे को भी इससे पोषण मिलता है । इसके साथ ही पानी का भी अधिक सेवन करें। सातवां, रात को भोजन के बाद मलाई रहित दूध अवश्य लें। खान-पान के बाद बारी आती है अच्छी नींद की वैसे तो नए मेहमान के आने से महिलाओं के सोने का रूटीन बिल्कुल बदल जाता है लेकिन जितनी देर सोएं अच्छे से सोएं बिना कोई तनाव सिर पर लिए।प हले के जमाने में महिलाएं जब गर्भ धारण करती थीं उनके खानपान का ध्यान बड़े बुजुर्ग रखते थे। लेकिन जब परिवार का आकार न्यूक्लियर होने लगा और लोगों की जिंदगी व्यस्त हो गईं महिलाएं नौकरी के लिए बाहर आईं तब गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद बड़े बुजुर्गों की मदद नहीं मिल पाती। ऐसे में महिलाओं को खुद ही अपनी सेहत का ध्यान रखना पड़ता है। वहीं सेहत का ध्यान खान-पान के बगैर अधूरा है। गर्भावस्था महिला के लिए एक ऐसी अवस्था होती है, जब उसे अपने स्वास्थ्य के साथ-साथ होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य की भी चिंता करनी होती है। ऐसे में उसके लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह ऐसा पौष्टिक आहार ले जो उसे ताकत दे ही उसके बच्चे के लिए भी लाभदायक हो । ऐसे कई व्यंजनों पर महिलाएं ध्यान दे सकती है ।जो गर्भावस्था में महिलाओं और उनके बच्चे दोनों के लिए लाभ दायक होंगी।

  • यह जरूरी नहीं कि गर्भवती महिलाएं भोजन की मात्रा पर ध्यान दें कि वह कब कितना भोजन ले रही है बल्कि सही मायनो में उन्हें भोजन की किस्म पर ध्यान देना चाहिए कि वह खुराक क्या ले रही हैं।
  • गर्भावस्था के दौरान पोषक तत्व युक्त खाना बहुत जरूरी है। ये पौष्टिक खुराक ही बच्चे के विकास में बहुत उपयोगी है।
  • गर्भावस्था में महिलाओं को अपने खाने में कैलोरी की मात्रा अधिक कर देनी चाहिए जिससे मां ओर बच्चे को भरपूर आहार मिल सकें।
  • महिलाएं अपने खाने में दूध अंडे फल आदि लें और तैलीय खाने पर जितना हो संयम बरतें।
  • भारतीय व्यंजनों के दौरान आप यदि स्वस्थ आहार लेती हैं तो आप स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों से बच सकती हैं।
  • यदि आप भोजन में हरी पत्तेदार सब्जियां, बीज वाली फलिया, मौसम के हिसाब से फल, दूधयुक्त खाद्य पदार्थ, सोयाबीन, दलिया, ओटमील, मूंगफली, अंकुरित दालें जैसी चीजों को सही मात्रा में लेती रहें तो निश्चित रूप से आप स्वस्थ रहेंगी और आपके होने वाले बच्चे का विकास भी सही रूप में होगा।
  • गर्भवती महिलाओं को भारतीय व्यंजन में ध्यान रखना चाहिए कि उनके व्यंजनों में प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, विटामिन, फोलिक एसिड जैसे पोषक तत्वों का समावेश हो, यदि वे इस बात का ध्यान रखेंगी तो गर्भावस्था के दौरान उन्हें कम परेशानियां होंगी।
  • आमतौर पर कहा जाता है भ्रूण के विकास के लिए प्रोटीन बेहद आवश्यक है ऐसे में आपको अपने व्यंजनों में प्रोटीन की मात्रा का खास ध्यान रखना चाहिए। जो भी आप खाना लें उसमें प्रोटीन की भरपूर मात्रा हो। मछली, मासं, अंडे में प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है लेकिन आप शाकाहारी भोजन लेना पसंद करती हैं तो आपको् पनीरयुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन अवश्य करना चाहिए।

गर्भावस्था में ये फल न खायें





गर्भावस्था में सेहतमंद रहने के लिए उचित आहार लेना बेहद जरूरी होता है। सही आहार से महिला का स्वास्थ्य तो अच्छा रहता ही है साथ ही साथ गर्भस्थ्य शिशु का भी शारीरिक और मानसिक विकास सही तरीके से होता है। गर्भावस्था में क्या खाए जाए से जरूरी यह जानना है कि क्या न खाया जाए। घर-परिवार की बुजुर्ग महिलाएं अपने अनुभव के आधार पर यह राय देती रहती हैं। चलिए जानते हैं कि गर्भावस्था में कौन सी सब्जियों और फलों से परहेज करना चाहिए।
आइये जानें, गर्भवस्था के दौरान कौन-कौन से फल और सब्जिया ना खाएं-
गर्भावस्था के दौरान इन फलों के सेवन बचें-
पपीता खाने से बचें : कोशिश करें कि गर्भावस्था के दौरान पपीता ना खाए। पपीता खाने से प्रसव जल्दी होने की संभावना बनती है। पपीता, विशेष रूप से अपरिपक्व और अर्द्ध परिपक्व लेटेक्स जो गर्भाशय के संकुचन को ट्रिगर करने के लिए जाना जाता है को बढ़ावा देता है। गर्भावस्था के तीसरे और अंतिम तिमाही के दौरान पका हुआ पपीता खाना अच्छा होता हैं। पके हुए पपीते में विटामिन सी और अन्य पौष्टिक तत्वों की प्रचुरता होती है, जो गर्भावस्था के शुरूआती लक्षणों जैसे कब्ज को रोकने में मदद करता है। शहद और दूध के साथ मिश्रित पपीता गर्भवती महिलाओं के लिए और विशेष रूप से स्तनपान करा रही महिलाओं के लिए एक उत्कृष्ट टॉनिक होता है।
अनानस से बचें :
गर्भावस्था के दौरान अनानस खाना गर्भवती महिला के स्वास्थ के लिए हानिकारक हो सकता है। अनानास में प्रचुर मात्रा में ब्रोमेलिन पाया जाता है, जो गर्भाशय ग्रीवा की नरमी का कारण बन सकती हैं, जिसके कारण जल्दी प्रसव होने की सभावना बढ़ जाती है। हालाकि, एक गर्भवती महिला अगर दस्त होने पर थोड़ी मात्रा में अनानास का रस पीती है तो इससे उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा। वैसे पहली तिमाही के दौरान इसका सेवन ना करना ही सही रहेगा, इससे किसी भी प्रकार के गर्भाशय के अप्रत्याशित घटना से बचा जा सकता है।
अंगूर से बचें : डॉक्टर गर्भवती महिलाओं को उसके गर्भवस्था के अंतिम तिमाही में अंगूर खाने से मना करते है। क्योंकि इसकी तासिर गरम होती है। इसलिए बहुत ज्यादा अंगूर खाने से असमय प्रसव हो सकता हैं। कोशिश करें कि गर्भावस्था के दौरान अंगूर ना खाए।
गर्भावस्था के दौरान इन सब्जियों से बचें : गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह ये होती है कि वो कच्चा या पाश्चरीकृत नहीं की हुई सब्जी और फल ना खाए। साथ? ही ये भी महत्वपूर्ण है कि आप जो भी खाए वो अच्छे से धुला हुआ और साफ हो। ये गर्भावस्था के दौरान आपको संक्त्रमण से बचाने के लिए महत्वपूर्ण है।
फलों और सब्जियों को गर्भावस्था आहार का एक अभिन्न अंग माना जाता है। इसलिए जम कर खाए लेकिन साथ ही इन कुछ बातों का ध्यान भी जरूर रखें, और बचे रहे गर्भावस्था के जटिलओं से।

महिलाओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी सम्पूर्ण जानकारी

महिलाओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी सम्पूर्ण जानकारी


सन्देश: नारी स्वास्थ्य पर यह एक विस्तृत आलेख है,आप इसे पोस्ट न कह कर किताब ही कहेंगे.माँ बहनें  इसे कॉपी कर रख सकती हैं कभी फुर्सत में पढ़ने के लिए.लाभ उठए और शेयर करें दूसरों से,कमेंट्स न ही करे.

आज नारीत्व तेजी की राह पर है और प्रत्येक महिला को अपने स्वास्थ्य एवं परिवर्तित होते पलों की बहुत अच्छी समझ रखना आवश्यक है। इस खण्ड में हमने महिलाओं के स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के बारे में सामान्य तथ्यों को रखने का प्रयास किया है।
                                          10 से 14 वर्ष की अधिकांश लड़कियों के शरीर में लम्बाई, भार, और आकार में परिवर्तन आने लगता है। इस चरण को यौवन कहा जाता है। जब शरीर में हाॅर्मोन्स कहलाए जाने वाले रसायनों की अतिरिक्त मात्रा निर्मित होती है, तो यौवन शुरू हो जाता है अर्थात् लड़की में शारीरिक एवं भावानात्मक परिवर्तन शुरू हो जाते हैं।यौवन का एक भाग ‘‘मासिक धर्म’’ (पीरियड्स) कहलाता है या दूसरे शब्दों में इसे ‘‘माहवारी’’ कहते हैं। आरम्भिक स्थिति में, एक लड़की को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसीलिए समस्याओं और संक्रमण से आसानी से निपटने के लिए नीचे दिए गए लेखों को ध्यानपूर्वक पढ़े।
पहली बार की दुविधा:

किसी लड़की को पहली बार मासिक धर्म होना। जब पहली बार मासिक धर्म होता है, तो हर लड़की को अलग-अलग अनुभूति होती है। यह आकर्षक हो सकती है, यह डरावनी हो सकती है, हालांकि, माहवारी की शुरूआत एक वास्तविक संकेत है कि आप किशोरावस्था से निकलकर नारीत्व अवस्था में पहुंच गयी हैं। ऐसा हो सकता है कि आपको अपनी उम्र बढ़ी हुई प्रतीत न हो, लेकिन अब आपका शरीर अपने खुद के शिशु को जन्म देने के लिए शारीरिकतौर पर तैयार है। यह बातें डरावनी हो सकती हैं, लेकिन ज्ञान प्राप्त कर और तैयारी कर आप अपनी माहवारी एवं नारीत्व से सम्बन्घित किसी भी तरह के भय को दूर निकाल सकती हैं।

रजोदर्शन (मेनार्च) क्या होता है?
आपके पहले मासिक धर्म को रजोदर्शन (मेनार्च) के रूप में उल्लेखित किया जाता है। संभावता जब आप बाथरूम में गयी होंगी या आपने कपड़े बदले होंगे तो आपने अपने भीतरी वस्त्र पर रक्त का धब्बा देखा होगा। यह रक्त का धब्बा गाढ़ा भूरा या चमकीला लाल दिखलाई पड़ सकता है, इसीलिए अगर यह ऐसा रंग नहीं है जिसकी आपने उम्मीद की थी, तो चिंता न करें। इस रक्त के लिए आप सैनिटरी पैड या टैम्पोन का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसके बाद से आपको आपके शरीर के निर्धारण के अनुरूप एक मासिक धर्म चक्र हुआ करेगा। प्रत्येक महिला का अपना निजी चक्र होता है, जो अक्सर 21 और 40 दिनों के बीच होता है। प्रत्येक चक्र की शुरूआत आपके मासिक धर्म से शुरू होती है। अक्सर 3 और 7 दिनों के बीच होती है। प्रत्येक अवधि के दौरान आपको होने वाली माहवारी के रक्त का रंग हल्का पड़ता जायेगा। सभवताः आपको हल्के मासिक धर्म चक्र शुरू होंगे और फिर भारी, अर्थात् हल्के और भारी का क्रम चलता रहेगा। आपका मासिक धर्म को नियमित होने में संभवता 2 वर्ष का समय लगेगा। कभी-कभी आपको मासिक धर्म नहीं भी होगा, लेकिन चिंता न करें, यह एक सामांय घटना है। यदि आप चाहें तो आप अपने मासिक धर्म क्रैम्प के लिए पेन रिलीवर या नेचुरल सप्लीमेंट ले सकती हैं।

रजोदर्शन (मेनार्च) की उम्र
रजोदर्शन (मेनार्च) अक्सर आपके स्तनों के विकसित होने के दो वर्ष बाद और आपके सामान्य और बगलों के बालों के विकसित होने के 4-6 महीने के बाद होता है। अधिकांश उत्तरी अमेरीकी महिलाओं में रजोदर्शन होने की उम्र 12 या 13 वर्ष है, हालांकि आपका पहला मासिक धर्म 9 और 16 वर्ष की उम्र की बीच कभी भी आ सकता है, जोकि आपकी लम्बाई, वजन, और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर निर्भर करता है। शीघ्र रजोदर्शन ज्यादा से ज्यादा हो रहा है - क्योंकि 8 वर्ष की उम्र की लड़कियों में भी मासिक धर्म की घटनाएं देखी गयी हैं। इसे हम परिपक्वता पूर्व रजोदर्शन (प्रीमेच्योर मेनार्च) के रूप में देख सकते हैं। ऐसी लड़कियों को जिन्हें 16 वर्ष की उम्र तक मासिक धर्म नहीं होता है, को प्राथमिक एमोनोरिया के अनुभव के रूप में वर्णित किया गया है। कभी-कभी बाहरी घटक या जटिलताएं आपके मासिक धर्म को समय से आने में बाधक बनते हैं। निश्चित रजोदर्शन की उम्र को प्रभावित करते हैं। यह निर्धारण करने में कि आपका शरीर कितनी तेजी से विकास करेगा सांस्कृतिक एवं आनुवंशिक घटक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विभिन्न जातियों की लड़कियां हल्की सी विभिन्न दर पर विकास करती प्रतीत होती हैं। आपने अनुभव किया होगा कि आपकी दोस्त को पहले से ही मासिक धर्म शुरू हो गए हैं और आपको अभी तक नहीं हुए हैं। आप यह सोच रही होंगी कि कहीं आपके साथ कुछ गड़बड़ तो नहीं है। चिंता मत कीजिए, प्रत्येक लड़की की विकास करने की विभिन्न दर होती हैं। यदि 15 या 16 वर्ष की उम्र तक आपको रजोदर्शन नहीं हुआ है, तो आपको अपने डाॅक्टर से मिलकर अंतर्निहित समस्याओं का निर्धारण कर लेना चाहिए।. अनेक ऐसी लड़कियों को भी समय से मासिक धर्म चक्र नहीं होते हैं, जिनका वजन कम हो या जो कुपोषित हों। आमतौर पर यह माना जाता है कि एक निश्चित वजन (100 पौंड) होना चाहिए जिससे कि आपका मस्तिष्क आपके शरीर को माहवारी शुरू करने का संकेत भेज सके।

माहवारी गंध से निपटना:

मासिक धर्म चक्र केवल 5 दिन की ही बात नहीं होती। इसके आलावा काफी कुछ है जैसे असुरक्षा, मनोस्थिति में परिवर्तन, ऐंठन और गंध आदि आपको कुछ और दिन तक परेशान करते हैं। लेकिन आपको हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं है, बस मासिक धर्म के दिनों में अपने को तरोताजा रखें और स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें। नीचे दिए गए सुझावों को पढ़ें और खुशी-खुशी अपने मासिक धर्म चक्र के दिनों से निपटें।

चरण 1
प्रचुर मात्रा में पानी पिएं। इससे आपकी शरीर प्रणाली साफ होती है, और प्राकृतिकरूप से आपका शरीर विषमुक्त होता है।

चरण 2 
मासिक धर्म सम्बन्धी उत्पादों (मेनस्टुªअल प्रोडक्ट) को इस्तेमाल करें। कपड़े के बने मासिक धर्म पैड ( क्लाथ मेनस्टुªअल पैड) में अधिक श्वसन क्षमता होती है जिससे जीवाणुओं को विकसित होने के लिए उष्मा नहीं मिल पाती है। मेनस्टुªअल कप यह सुनिश्चित करते हैं कि मासिक धर्म द्रव योनि से बाहर न निकलें।

चरण 3 
वेट वाइप्स और बेबी वाइप्स के पैक अपने साथ रखें। घर से बाहर होने पर इनका उपयोग खुद को साफ करने में करें। इन वाइप्स में विशेष प्रकार के जीवाणुरोधी (एंटीबैक्टीरियल) होते हैं जोकि शरीर की गंध से बचाव में मदद करते हैं। वेट वाइप्स और बेबी वाइप्स में जीवाणुरोधी (एंटीबैक्टीरियल) होते हैं। माहवारी गंध सिर्फ जीवाणु (बैक्टरिया) के कारण होती है। हालांकि, बहुत ज्यादा जीवाणुरोधी (एंटीबैक्टीरियल) उत्पादों एवं वाइप्स जिनमें ग्लाइसिरीन होता है के कारण योनि में छाले (यीस्ट संक्रमण) और योनि में जलन हो सकती हैै। कभी भी शौचालय (टाॅयलेट) में अपने वाइप्स न फेंके इससे शौचालय (टाॅयलेट) और मल-प्रवाह प्रणाली बंद हो सकती है।

चरण 4
अपना पंसदीदा बाडी स्प्रे अपने साथ रखें और स्नान करने के बाद इसका इस्तेमाल करें।

चरण 5
स्नान। कहीं भी जाने से पहले स्नान करें। हालांकि योनि को बार-बार धोने से योनि में सूखापन, जलन और छाले (यीस्ट संक्रमण) की समस्या पैदा हो सकती है।

चरण 6 
आत्मविश्वास से लबरेज रहें। आपके दोस्तों और सहकर्मियों को किसी तरह की गंध महसूस नहीं होगी।

सुझाव

हमेशा अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता का ख्याल रखें। पेशाब और अपना पैड या टैम्पाॅन (रक्तस्राव रोकने के लिए अवरोध) बदलने के बाद अपनी योनि साफ करें।

    जहां कहीं भी आप जाएं, एक जोड़ा साफ अनडाइ हमेशा अपने साथ रखें।
  • अपना बाॅडी स्प्रे अपने साथ ले जाएं। जब कभी भी जरूरत महसूस हो स्प्रे करें लेकिन थोड़ा-बहुत ही। आप खुश्बु के निशान सामने वाले व्यक्ति तक छोड़ना नहीं चाहेंगी।
  • अपना पैड, मेनस्टुªअल कप या टैम्पान बदलना न भूलें। साथ ही इसे पूरा भर जाने तक इंतज़ार न करें। जितना जल्दी संभव हो इसे बदल लें!
  • यदि आप मेनस्टुªअल कप का इस्तेमाल कर रही हैं और आपको यह महसूस होता है कि आपका माहवारी रक्त आक्रमक गंध पैदा कर रहा है, तो आपको संक्रमण हो सकता है, इसीलिए तुरंत डाॅक्टर से सलाह लेनी उचित रहेगी।
पीड़ादायक माहवारी:
कभी-कभी आपकी माहवारी पीड़ादायक हो सकती है। अधिकांश लड़कियों को अपने मासिक धर्म चक्र के दौरान पीएमएस (प्री-मेनस्टुªअल सिंड्रोम), ऐंठन (क्रेम्प), या सिरदर्द की शिकायत होती है। ये समस्याएं सामान्य हैं और चिंता की कोई बात नहीं है। यहां कुछ तथ्य दिए गए हैं जो बतलाते हैं कि मासिक धर्म चक्र की समस्याएं सामान्य होती हैं और यह संकेत देती हैं कि कुछ घटित हो रहा है।

What Is PMS?
प्री-मेनस्टुªअल सिंड्रोम (पीएमएस) शारीरिक एवं भावानात्मक लक्षणों के लिए एक शब्द है जिसका अनुभव अधिकांश लड़कियों एवं महिलाओं को प्रत्येक माह अपने मासिक धर्म शुरू होने से ठीक पहले होता है। यदि आपको पीएमएस हो, तो आपको निम्नलिखित का अनुभव हो सकता हैः मुंहासे, सूजन, पीठदर्द, स्तनों में दर्द, सिरदर्द, कब्ज, दस्त, भोजन की लालसा, अवसाद, नीलापन, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता लाने में दिक्कत, या तनाव झेलने में परेशानी।

जब किसी लड़की को माहवारी शुरू हाती है, तो शुरू के 1 या 2 सप्ताह में पीएमएस की शिकायतें अपनी चरम सीमा पर होती हैं, और जब माहवारी होनी शुरू हो जाती है, तो अक्सर ये लक्षण समाप्त हो जाते हैं।

कुछ लड़कियों को ऐंठन की शिकायत क्यों होती है?

अधिकांश लड़कियों को अपने मासिक धर्म के पहले कुछ दिनो के दौरान पेड़ु में ऐंठन होती है। ऐंठन (क्रेम्प) संभवता आपके शरीर द्वारा निर्मित प्रोस्टाग्लाइंडिस, नामक रसायन की वजह से होती है। यह रसायन गर्भाशय की मांसपेशियों को संकुचित कर देता है। अच्छी खबर यह है कि एंेठन केवल आखिर के कुछ दिनों में ही होती है। लेकिन अगर आपको दर्द हो रहा हो, तो आप आईब्रोफेन जैसी दवा का सेवन कर सकती हैं।

व्यायाम से भी आप खुद को बेहतर अहसास करा सकती हैं। व्यायाम करने से शरीर से एंडोरफिन नामक रसायन निकलता है, जिससे आपको अच्छा महसूस होता है। गर्म पानी का स्नान या पेट पर गर्म सेक करने से आपकी ऐंठन तो खत्म नहीं होगी लेकिन आपकी मांसपेशियों को थोड़ी बहुत राहत जरूरत मिलेगी। यदि आपकी ऐंठन इतनी गंभीर हो जाए कि आप स्कूल न जा पाएं या फिर अपने दोस्तों के साथ काम न कर पाएं, तो आपको डाॅक्टर की सलाह लेनी चाहिए। 

माहवारी की समस्याएं

भले ही यह विचित्र लगे, लेकिन मासिक धर्म चक्र से सम्बन्धित अधिकतर चीजें पूर्णतया सामान्य होती हैं। लेकिन कुछ ऐसी स्थितियां भी होती हैं जोकि अधिक गंभीर हो सकती हैं। यदि आपको इनमें से किसी भी समस्या का संदेह हो, तो तुरंत डाॅक्टर से सलाह लें।

माहवारी  न होना

महवारी न होने को डाक्टर एमेनोरिहिया के रूप में परिभाषित करते हैं। ऐसी लड़कियों को जिन्हें 16 वर्ष की उम्र तक माहवारी शुरू नहीं हेती है, को प्राथमिक एमेनोरिहिया की शिकायत हो सकती है। हाॅर्मोन असंतुलन या विकास की समस्या की वजह के कारण अक्सर एमेनोरिहिया की शिकायत हो जाती है।


एक ऐसी भी स्थिति होती है, जिसे दूसरे दर्जे की एमेनोरिहिया कहते हैं, इस अवस्था में किसी भी ऐसी महिला को जिसे सामान्य माहवारी होती है, की अचानक कम से कम 3 महीनों तक माहवारी रूक जाती है। हाॅर्मोन ;ळदत्भ्द्धजारी करने वाले गोनेडउहट्रोपिन के निम्न स्तर, जोकि अंडोत्सर्जन (आॅाल्युशन) और मासिक धर्म को नियंत्रित करते हैं, अक्सर एमेनोरिहिया का कारण बनते हैं। तनाव, आहार, भार बढ़ना या कम होना, जन्म नियंत्रण गोलियों का सेवन बंद कर देना, थाइराॅइड स्थितियां, और डिम्बग्रंथि अल्सर कुछ ऐसी समस्याओं के उदाहरण हैं जोकि कि आपके हाॅर्मोन्स को असंतुलित कर सकती हैं। सबकुछ सुचारूढंग से करने के लिए, आपके डाॅक्टर हाॅर्मोन चिकित्सा का इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि कोई चिकित्सीय स्थिति आपके मासिक चक्र को प्रभावित कर रही है, तो उस स्थति का इलाज करने से ही समस्या का समाधान पाने में मदद मिलेगी। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, बहुत ज्यादा मेहनत करने और अल्प आहार लेना एमेनोरिहिया का कारण बन सकता है। मेहनत के कामों में कटौती और अधिक कैलोरी के साथ संतुलित आहार लेने से इस समस्या को दुरूस्त करने में मदद मिलेगी लेकिन अपने डाॅक्टर से सलाह लेना भी सुनिश्चित करें।


बहुत ज्यादा माहवारी होना

बहुत ज्यादा और लम्बी अवधि तक माहवारी होने को डाॅक्टर अत्यार्तव (मेनोरहेजिया) के रूप में परिभाषित करते हैं। सामान्य प्रवाह में 1 या 2 दिन ज्यादा माहवारी होती है, लेकिन इस अवधि से ज्यादा समय तक ज्यादा माहवारी होना अत्यार्तव (मेनोरहेजिया) कहलाता है। ऐसी लड़कियों को जिन्हें अत्यार्तव (मेनोरहेजिया) की शिकायत होती है का पैड कुछ ही घण्टों में भीग जाता है या फिर उन्हें 7 दिन से भी अधिक दिनों तक माहवारी होती रहती है। ( मासिक धर्म के दौरान थक्के होना अत्यार्तव (मेनोरहेजिया) के आवश्यकतौर से लक्षण नहीं हैं, हालांकि कई लड़कियों को, हल्की तथा भारी माहवारी होने पर, माहवारी के साथ थक्के निकलते हैं। )


शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्ररोन की मात्रा के बीच असंतुलन अक्सर अत्यार्तव (मेनोरहेजिया) के कारण होता है। इस असंतुलन के कारण, एंडोमीटिरीयम, गर्भाशय की परत का विकास होता रहता है। और जब माहवारी के दौरान शरीर एंडोमीटिरियम से छुटकारा पाता है, तो बहुत ज्यादा रक्तस्राव होता है।

यौवन अवस्था के दौरान अनेक लड़कियों को हाॅर्मोन असंतुलन की शिकायत होती है, इसीलिए किशोरावस्था में अत्यार्तव (मेनोरहेजिया) का अनुभव होना आसामान्य बात नहीं है। भारी रक्तस्राव की अन्य वजह थाइराॅइड स्थितियों, रक्त की बीमारियों, योनि या ग्रीव में सूजन या संक्रमण के कारण हो सकती हैं। आसामांय रक्तस्राव के कारणों का पता लगाने के लिए डाॅक्टर श्रोणी जांच, पेप स्मियर, और रक्त जांच जैसे परीक्षण कर सकते हैं। यदि आपको अत्यार्तव (मेनोरहेजिया) की शिकायत है, तो इसका निवारण हाॅर्मोन्स, दवाओं या गर्भाशय में किसी तरह का विकास जिसकी वजह से अत्यधिक रक्तस्राव हो रहा है, को दूर करने से किया जा सकता है.


अत्यंत पीड़ादायक माहवारी

अत्यधिक पीड़ादायक माहवारी होने को डाॅक्टर डिसमेनउहरिया के रूप में परिभाषित करते हैं। प्राथमिक डिसमेनउहरिया उस पीड़ादायक माहवारी का उल्लेख करता है, जोकि किसी बीमारी या अन्य स्थिति के कारण किशोरियों को होती है। जबकि दूसरे दर्जे का डिसमेनउहरिया किसी बीमारी या स्थिति के कारण होता है। प्राथमिक डिसमेनउहरिया की वजह भी वही प्रोस्टाग्लैंडीन नामक रसायन होता है जिसकी वजह से ऐंठन होती है। आपकी माहवारी के दौरान प्रोस्टाग्लैंडीन के कारण आपको बड़ी मात्रा में मिचली, उल्टी, सिरदर्द, पीठदर्द, दर्द और गंभीर ऐंठन की शिकायत हो सकती है। भाग्यवश, ये लक्षण केवल एक या दो दिन ही रहते हैं। प्राथमिक डिसमेनउहरिया के इलाज के लिए डाॅक्टर दाहक-रोधी (एंटी-इनफ्लेमेटरी) दवाएं लिखते हैं। ऐंठन में व्यायाम, गर्म पानी की बोतल, जन्म नियंत्रक गोलियां राहत प्रदान कर सकती हैं। कुछ अधिक सामान्य स्थितियां जिनके कारण दूसरे दर्जे की डिसमेनउहरिया हो सकती है में शामिल हैंः अंतर्गर्भाशय-अस्थानता (एंडोमेट्रियोसिस)। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें आमतौर से गर्भाशय में ही पाए जाने वाले ऊतक गर्भाशय के बाहर विकसित होना शुरू हो जाते हैं। गर्भाशय की भीतरी दीवार पर जीवाणुओं का संक्रमण (बैक्टीरियल इंफेक्शन) होना श्रोणी सूजन बीमारी (पेलविक इनफ्लेमेटरी डीसीज) कहलाता है। इन सभी स्थितियों मंे यह आवश्यक है कि डाॅक्टर समस्या की पहचान करने के बाद ही उचित तरीके से आपका इलाज करें।

आपकी फिटनेस:

 
कार्यस्थल पर अधिक बुद्धिशीलता से काम करें! घर पर अधिक ऊर्जावान बने रहें! अपने जीवन साथी के साथ कुछ गुणवत्ता प्रदान समय व्यतीत करें! ये सभी कार्य आप तभी कर सकती हैं, जब आप शारीरिकतौर से सक्रिय हों। लेकिन क्या आप में प्रेरणा का अभाव है? यदि आप कोई व्यायाम कार्यक्रम शुरू करने या नियमितरूप से फिटनेस बनाने के लिए किस प्रेरक स्रोत की तलाश में थीं, तो यहां 6 स्वास्थ्य सम्बन्धी तथ्य दिए जा रहे हैं, जोकि आपको फिट रहने के लिए निश्चय ही प्रेरित करेंगे।

मस्तिष्क शक्ति को बढ़ाने के लिए व्यायाम
व्यायाम करने से न केवल आपके शरीर में सुधार आता है, बल्कि यह आपको मानसिकतौर से कार्यकलाप करने में भी मदद करता है। व्यायाम करने से ऊर्जा स्तर में वृद्धि होती है और मस्तिष्क मंे सेरोटोनिन की मात्रा बढ़ती है, जिससे मानसिक स्पष्टता में सुधार होने का मार्ग प्रशस्त होता है। कुल मिलाकर एक अधिक उत्पादनकारी दिन बनता है। उत्पादकता में सुधार न केवल आपको एक बेहतर कर्मी बनाता है, बल्कि इससे कार्यस्थल पर मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के लिए बेहतर चीजों का सृजन होता है। कम्पनियों को कम समय बर्बाद होता है, कर्मचारी कम बीमार पड़ते हैं और इस प्रकार स्वास्थ्य देखभाल पर बहुत कम लागत आती है और इस प्रकार समग्र विकास होता है

व्यायाम से आपको ऊर्जा मिलती है
आप आश्र्चयचकित होंगी कि सुबह सिर्फ 30 मिनट वर्क आउट करने से आपके पूरे दिन में कितना बदलाव आ जाता है। जब व्यायाम से आपके रक्त में एंडोर्फिन प्रवाहित होता है और आपकी ताकत और सहनशक्ति में सुधार आता है, तो प्रतिदिन के कार्याें को करना अधिक आसान हो जाता है। अब सीढि़यां चढ़ने और किराने का सामान लाने के लिए बाजार जाने में आपको कोई दिक्कत महसूस नहीं होती है। दिनभर अधिक ऊर्जावान बने रहने में भी आपको मदद मिलती है। प्रसिद्ध शारीरिक प्रशिक्षक का कहना है कि सुबह थोड़ा सा व्यायाम करने से जो आपको शारीरिक थकावट महसूस होती है वह प्रतिदिन की थकान से बिल्कुल अलग है। एक बार जब आपका शरीर व्यायाम करने का अभ्यस्त हो जाता है, तो फिर आप और भी अधिक ऊर्जावान महसूस करने लगती हैं।

फिट रहने के लिए समय निकालना मुश्किल नहीं है
यह अपने समय को अधिक बुद्धिमता से उपयोग करने जैसा है! आप एक तीर से दो निशाने लगा सकती हैं! आप अपने नन्हें-मुन्नों को पार्क में घुमाने ले जा सकती हैं या बाइक दौड़ा सकती हैं, और साथ ही साथ आप अपने परिवार के साथ शारीरिक गतिविधियां करते हुए मज़ा ले सकती हैं। इसके आलावा आप लम्बी पैदल यात्रा पर भी जा सकती हैं, बच्चों के साथ तैराकी कर सकती हैं, या लुपा-छुपी खेल सकती हैं, बच्चों के साथ फुटबाॅल खेल सकती हैं, उन्हें अपनी पीठ पर बैठाकर घुड़सवारी करा सकती हैं। जिम में जाकर धीमे-धीमे चलने और औपचारिक कसरत करने के लिए एक घण्टे देने का विचार त्याग दें। बजाय इसके आप आप दिन भर में शारीरिक गतिविधियां करके ही अच्छी कसरत कर सकती हैं। 20 मिनट के लिए किसी को साथ लेकर घूमने निकल जाएं। 10 मिनट के लिए रस्सी कूद लें, और कभी-कभी 20 मिनट के लिए दौड़ लगा लें।
वास्तव में, 15 या 20 मिनट की कोई भी गतिविधि बहुत ज्यादा प्रभावशाली हो सकती है। सुबह घर की साफ-सफाई में लग जाना, दोपहर को बच्चों के साथ पार्क में बाइक दौड़ाना, और शाम को तेज चाल से घूमना दिन भर की एक पर्याप्त कसरत हो सकती है।

कसरत करने से बीमारियां आपसे दूर रहती हैं!!
शोध दर्शाते हैं कि कसरत करने से हृदय की बीमारियों, उच्च रक्त चाप, उच्च कोलोस्ट्राॅल, टाइप 2 मधुमेह, गठिया, आॅस्टियोपोरोसिस (हड्डियों की क्षति), मांसपेशी की हानि आदि को धीमा करने में मदद मिलती है। बशर्त है कि आप आवश्यकता से ज्यादा कसरत न करें, कसरत करने से रोग प्रतिरोध क्षमता का विकास होता है- और इस प्रकार आपको आसानी से ठंड या फ्लु नहीं सताते हैं। वास्तव में, शायद ही कोई प्रमुख स्वास्थ्य समस्या हो जिसमें व्यायाम सकारात्मक भूमिका न निभाता हो।

स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ्य हृदय निवास करता है
व्यायाम (एक्सरसाइज) करने से न केवल आपको बीमारियों से लड़ने में मदद मिलती है बल्कि इससे आपका हृदय और हृदय प्रणाली अधिक प्रभाशालीढंग से कार्य करती है। हृदय हानिकारक परतों का निर्माण कम करता है। यह अधिक कुशलता से रक्त को पम्प करता है और जब हृदय अधिक शक्तिशाली बन जाता है, तो यह प्रति धड़कन अधिक रक्त को पम्प करता है। इस प्रकार हृदय की समस्याएं न्यूनतम हो जाती हैं। ज्यादा काम करने पर हृदय के बहुत तेजी से धड़कने की शिकायत दूर हो जाती है।
आपके व्यायाम करने के कुछेक दिनों के भीतर ही, आपका शरीर तेजी से उत्तेजना के अनुकूल हो जाता है और फिर आपके लिए सबकुछ आसान हो जाता है। आपको कम थकावट महसूस होती है। श्वास लेने में ज्यादा प्रयास करने की जरूरत नहीं होती। अब आपको इतना दर्द नहीं होता है।

व्यायाम से अपनी कार्य क्षमता को बढ़ाएं
कुछ सप्ताह के लगातार व्यायाम से, आपको यह महूसस होगा कि आपके कपड़ों की फिटिंग बदल गयी है और आपकी मांसपेशियों में रंगत आ गयी है। यदि आप गोल्फ, टेनिस या बास्केट बाॅल खेलती हैं, तो आप पायेंगी कि आपकी मांसपेशियां बहुत ज्यादा चुस्त हो गयी हैं। नियमितरूप से व्यायाम करने से, आपकी मांसपेशियां मजबूत बनती हैं, उनमें लोचकता आती है और कुल मिलाकर आपकी कार्य प्रदर्शन क्षमता बढ़ती है। इसके अतिरिक्त, आपकी प्रतिक्रिया समय और संतुलन में भी सुधार आता है।

माह के समय यौन सम्बन्ध:

माहवारी के दौरान यौन सम्बन्ध बनाना निजी पसंद और सांस्कृतिक विश्वासों का मामला है। चिकत्सीयतौर पर, माहवारी के दौरान यौन सम्बन्ध बनाना सुरक्षित है बशर्त है कि आप असुरक्षित यौन सम्बन्ध न बनाएं।
 
मासिक धर्म चक्र के दौरान यौन सम्बन्ध बनाने के फायदे
1. यदि आपको संभोग सुख मिल रहा है, तो यौन सम्बन्ध बनाने से माहवारी के पहले और बाद के लक्षणों से आपको मुक्ति मिल सकती है।
2. संभोग सुख के दौरान एंडोरफिन्स जारी होता है जो कि एक प्राकृतिक दर्दनिवारक (पेनकिलर) है और मूड़ को अच्छा बनाता है, जिससे आपकी माहवाीर से जुड़ी ऐंठन, सिरदर्द, हल्का तनाव, और चिड़चिड़ापन दूर होता है।
3. कुछ महिलाएं खुद भी माहवारी के दौरान यौन सम्बन्ध बनाने के दौरान आनंद का अनुभव करती हैं क्योंकि श्रोणि और जननांगों क्षेत्रों में परिपूर्णता का एहसास होता है।
क्या माहवारी के दौरान यौन सम्बन्ध बनाने से लिंग या गर्भाशय को कोई हानि होती है?
माहवारी के दौरान निकलने वाले रक्त और ऊतक में गर्भाशय की परत होती है। इसमें कुछ भी गंदा नहीं होता और माहवारी के द्रव के सम्पर्क से लिंग को किसी तरह की चोट या जलन नहीं होती है। ना ही गर्भाशय को किसी प्रकार का खतरा होता है। जैसा कि आपने सुना या पढ़ा होगा उसके विपरीत गर्भाशय ग्रीवा, या गर्भाशय का मुंह माहवारी के रक्त के प्रवाह के लिए ज्यादा नहीं खुलता है। माहवारी के दौरान गर्भाशय में लिंग के प्रवेश कराने पर पर कोई खतरा नहीं होता है। 
माहवारी के दौरान यौन सम्बन्ध बनाने से क्या आप गर्भवती हो सकती हैं?
यदि कोई महिला अंडोत्सर्जन (आॅवयुलेशन) के दौरान, अर्थात् अपने अंडाशय से अंडा जारी होने के समय, यौन सम्बन्ध बनाती है, तो वह गर्भवती हो जाती है। आमतौर पर अंडोत्सर्जन (आॅवयुलेशन) आपकी माहवारी होने से 14 दिन पहले घटित होता है। इस प्रकार, माहवारी के दौरान गर्भधारण करने के अवसर बहुत कम होते हैं। हालांकि, इसके अपवाद भी हो सकते हैं, यदि आप गर्भधारण नहीं करना चाहती हैं, तो आपको सलाह दी जाती हैं कि हमेशा सुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाएं।

माहवारी के दौरान यौन सम्बन्ध बनाने के जोखिम
1. यदि कोई पुरूष एचआईवी से संक्रमित महिला से उसकी माहवारी के दौरान यौन संबंध बनाता है, तो इस रोक के संक्रमण उसके (महिला) शरीर में पहुंचने की संभावना बढ़ जाती है।
2. एक महिला के माहवारी के दौरान अपने पुरूष साथी के साथ संबंध बनाने पर संक्रमण (अर्थात् दाद) के चपेट में आने की संभावना बढ़ जाती है।
3. माहवारी के दौरान यौन सम्बन्ध बनाने पर किसी महिला के पेड़ु में सूजन आने की संभावना बढ़ जाती है।
4. जब किसी महिला से माहवारी के दौरान यौन सम्बन्ध बनाए जाते हैं, तो वह अपने यौन साथी को अन्य रक्त जनित बीमारियां जैसे हेपेटाइटिस-बी से संक्रमित कर सकती है।
5. मासिक धर्म के दौरान यौनि का पीएच (ph) कम अम्लीय होता है इसीलिए माहवारी के दौरान किसी महिला के यीस्ट या बैक्टीरियल संक्रमण जैसे कि केंडीडायसिस या बैक्टीरियल वेजिनोसिस विकसित करने की संभावना ज्यादा रहती है। 
 
माहवारी के दौरान यौन सम्बन्ध बनाने के दौरान याद रखने योग्य बातें
माहवारी के दौरान, यदि कुछ सावधानियां बरती जाएं, तो यौन सम्बन्ध बनाना आनंददायक हो सकता है। कुछ बातें आपको याद रखनी होंगी।
1. आपको सलाह दी जाती है कि किसी गर्भनिरोधक का इस्तेमाल जरूर करें। कंडोम सबसे अच्छा गर्भनिरोधक है। यह आपका यौन संचारित संक्रमणों से बचाव करता है साथ ही आपका गर्भवती होने से भी बचाव होता है।
2. माहवारी के दौरान मुख यौन सम्बन्ध बनाते (ओरल सेक्स) समय दंत बांध (डेंटल डेम) का इस्तेमाल करने पर विचार करें। ये विभिन्न साइज और फ्लेवर में आते हैं।
3. यौन सम्बन्ध बनाते से पहले रक्तस्राव रोकने वाला अवरोध हटा दें।

(मेरा मानना ही इन दिनों में यौन सम्बन्ध न ही बनायें)

कुछ मिथक एवं तथ्य
माहवारी (पीरियड्स) के बारे में मनगढ़ंत बातें एवं सच्चाईयां

मनगढ़ंत बात - माहवारी (पीरियड्स) के दौरान गर्भवती होना असंभव है!
सच्चाई - अंडोत्सर्जन (आॅव्युलेशन) किसी भी समय हो सकता है।
मनगढ़ंत बात - मासिक धर्म चक्र हमेशा 28 दिनों में होना चाहिए। 
सच्चाई - मासिक धर्म चक्र हर महिला में अलग-अलग समय पर होता है, 28 दिन केवल एक औसत समय है।
मनगढ़ंत बात - मासिक धर्म के दौरान किसी भी तरह की गतिविधि करने से बचें और बिस्तर में आराम करें। 
सच्चाई - व्यायाम से लक्षणों में मदद मिल सकती है, इससे आपका दर्द बदतर नहीं होगा। यदि कोई महिला रक्त की कमी (एनीमिया) से पीडि़त नहीं है, तो माहवारी के दौरान उसे कमजोरी नहीं होगी। माहवारी के दौरान असामांय रक्तस्राव के कारण रक्त की कमी (एनीमिया) की शिकायत हो जाती है। 
मनगढ़ंत बात - सभी महिलाओं को माहवारी (पीरियड्स) के दौरान पीड़ा होती है। 
सच्चाई - अधिकांश महिलाओं को मामुली परेशानी होती है और इससे उनकी नियमित गतिविधियों पर कोई असर नहीं पड़ता है। कुछ महिलाओं को बहुत ज्यादा दर्द और अन्य शिकायतें होती हैं 
मनगढ़ंत बात - मासिक धर्म के दौरान आपको यौन सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए।
सच्चाई - यदि दोनों साथियों की यौन सम्बन्ध बनाने की इच्छा है, तो ऐसा न करने का कोई चिकित्सीय कारण नहीं है, और संभोग से कभी-कभी तो ऐंठन की शिकायत दूर होती है। 
मनगढ़ंत बात - स्नान करने से माहवारी की ऐंठन पैदा होती है या बदतर हो जाती है। 
सच्चाई - गर्म पानी से स्नान करने से मांसपेशियों को आराम मिलता है और दर्द कम होता है।
मनगढ़ंत बात - माहवारी (पीरियड्स) के दौरान आसानी से ठंड लग जाती है और इसीलिए ठंडे पानी और पेय पदार्थों से परहेज करना चाहिए। 
सच्चाई - कुछ महिलाओं को ठंड पदार्थों से दर्द की स्थिति बढ़ जाती है लेकिन ऐसा नहीं है कि आपको ठंड ही लग जाए। 
मनगढ़ंत बात - माहवारी (पीरियड्स) के दौरान आपको अपने पैर गीले नहीं करने चाहिए। 
सच्चाई - ऊपर देखें; टेम्पेक्स बुकलेट्स और अन्य अतीत की पत्राचार सामग्रियों ने इसे लोकप्रिय बनाया है।
मनगढ़ंत बात - जन्म नियंत्रक गोलियां लेने वाली महिलाओं को माहवरी (पीरियड) होनी चाहिए।
सच्चाई - वे महिलाएं जो कि जन्म नियंत्रक गोलियों का सेवन कर रही हैं, को गर्भाशय विकास का अनुभव नहीं होता है और इसीलिए उन्हें परत (लाइनिंग) को बहाने के लिए माहवारी की जरूरत नहीं होती है। गोली के साथ होने वाला रक्तस्राव ‘‘वास्तविक’’ माहवारी नहीं है, और महिला के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक नहीं है। 
मनगढ़ंत - माहवारी के दौरान महिलाएं हमेशी चिड़चिड़ी होती हैं।
सच्चाई - सभी महिलाएं पीएमएस लक्षण या इसी प्रकार के लक्षणों का अनुभव नहीं करतीं। ‘‘महीने के उन दिनों में’’ आप सभी महिलाओं को स्वभाव को चिड़चिड़ा होना के रूप में वर्णित नहीं कर सकते। किसी अन्य समय की तरह ही माहवारी के दौरान भी वे सामान्य स्वभाव बनाकर रखने में सक्षम होती हैं, वे मानसिकरूप से कमजोर नहीं होती हैं।
मनगढ़ंत बात - माहवरी के दौरान बालों को न धोएं न संजाएं-संवारें।
सच्चाई - यह मिथक सिर्फ अंधविश्वास है।
मनगढ़ंत बात - माहवारी के रक्त से बदबू आती है।
सच्चाई - पैड्स एवं टैम्पाॅन के उपयोग से जीवाणु (बैक्टीरिया) बनते है जिसके परिणामस्वरूप दुर्गंध विकसित होती है, रक्त में दुर्र्गंध नहीं होती।
मनगढ़ंत बात - मासिक धर्म रक्त विषाक्त या अशुद्ध होता है।
सच्चाई - किसी अन्य रक्त की तरह यह अशुद्ध नहीं होता, टेम्पाॅन शरीर में गंदे रक्त को नहीं रखते हैं। किसी अतिरिक्त साफ-सफाई या डियोडरेंट की जरूरत नहीं होती है। सिर्फ अपने उत्पादों की मार्केटिंग के लिए ही ऐसा भय उत्पन्न किया जाता है। 
मनगढ़ंत बात - माहवारी के दौरान, आपको कुछ विशेष खाद्य पदार्थ (मांस, दूध से बने पदार्थ)नहीं खाने चाहिए।
सच्चाई - जो चाहो वो खाओ, आपको कोई नुकसान नहीं होने वाला। वास्तव में विटामिन से दर्द को राहत मिलती है, इसीलिए आयरन के लिए मांस और कैल्शियम के लिए दूध आदि का सेवन करें।
मनगढ़ंत बात - गर्भवती महिला को रक्तस्राव नहीं होता।
सच्चाई - धब्बे या हल्का रक्त स्राव सामान्य है, लेकिन सुनिश्चित होने के लिए डाक्टर से मिलें।

मासिक धर्म चक्र के दौरान आहार

यह बात हर कोई जानता है कि हमारी खानपान की आदतें सीधेतौर पर हमारे शरीर को प्रभावित करती हैं। जब आपके मासिक धर्म चक्र की बात आती है, तो इस पर भी यही नियम लागू होता है। यदि आप चाहती हैं कि आपको कम पीड़ादायक मासिक धर्म चक्र (पीरियड) हों, तो आपको विशेष प्रकार का आहार लेना होगा।

आपके अपने पीएमएस को नियंत्रित करने और समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए, आपको माहवारी (पीरियड्स) के दौरान निम्नलिखित आहार दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिएः

1).दिन में तीन बार भोजन करने की अपेक्षा यदि आप दिनभर में थोड़ा-थोड़ा करके छह बार आहार लेंगी, तो इससे आपका ब्लड शुगर ठीक बना रहेगा और आपका मिज़ाज भी अच्छा रहेगा।

2).यदि आप दूध का सेवन नहीं करती हैं, तो सोया, राइस मिल्क, टोफू या गोभी से अपने शरीर में कैल्शियम की मात्रा बढ़ाएं। किण्वित (फरमेंटेड) सोया का सेवन करने पर विचार करें क्योंकि विशेष प्रकार के सोया उत्पादों में फाइटोएस्ट्रोजेंस होते हैं, जोकि आपके शरीर में प्राकृतिकतौर से पाये जाने वाले एस्टोजेन का निर्माण कर सकते हैं, और इससे आपको प्रजनन सम्बन्धी स्वास्थ्य कठिनाइयां नहीं होंगी। यदि आपके शरीर में बहुत ज्यादा मात्रा में अथवा बहुत कम मात्रा में एस्ट्रोजन हैं, तो आपको अपनी प्रजनन क्षमता से समझौता करना पड़ सकता है।
3). कभी-कभी विटामिन बी6 का सेवन करने का परामर्श दिया जाता है, लेकिन इस बात के बहुत ही कम निर्णायक प्रमाण हैं कि बी6 का सप्लीमेंट वास्तव में प्रभावी है। साथ ही, प्रतिदिन 100 मिग्रा से अधिक का सेवन तंत्रिका (नर्व) क्षति का कारण बन सकता है, हालांकि यह स्थाई नहीं है, लेकिन जोखिम तो बना ही रहता है। आपके शरीर को विटामिन बी6 की पर्याप्त मात्रा प्रदान करने के लिए आपका आहार ही पर्याप्त होना चाहिए।
4). विटामिन ई लाभदायक हो भी सकती है, और नहीं भी। पीएमएस के इलाज के रूप में, विटामिन ई की प्रभावशीलता पर किए गए अध्ययन से अलग-अलग परिणाम प्राप्त हुए हैं। विटामिन बी6 से भिन्न, विटामिन ई के कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं।


5).कभी-कभी मैग्नीशियम का सेवन करने की सलाह दी जाती है, हालांकि इसका भी उच्च सहनशीलता स्तर (300 मिग्रा) होता है और उच्च खुराक लेने पर यह दस्तावर साबित हो सकती है। यदि आप मैग्नीशियम सप्लीमेंट लेने का प्रयास कर रही हैं, तो ध्यान रहे कि आपके सभी खाद्य स्रोतों में इसकी मात्रा 350 मिग्रा से ज्यादा न हो।



6).शराब का सेवन न करें। इसका प्रभाव निराशाजनक होता है और इससे आपकी माहवारी के लक्षण बदतर हो सकते हैं।



अपने चक्र को नियंत्रित करना



शोध बतलाते हैं कि अधिक रेशेदार (फाइबर) और निम्न वसा वाला आहार अनियमित मासिक धर्म का कारण बन सकता है। एक अध्ययन में 210 महिलाओं से, जिनकी उम्र 17 और 22 के मध्य थी, से उनकी आहार सम्बन्धी आदतों और मासिक धर्म चक्र के इतिहास के बारे में पूछा गया। ऐसी महिलाओं ने जिन्होंने अनियमित माहवारी के बारे में बताया वे अपने भोजन में ज्यादा कच्चा एवं आहार (फाइबर) ले रही थीं, जबकि वे महिलाएं जोकि अधिक वसा युक्त (सेचुरेटेड) आहार ले रही थीं, का मासिक धर्म चक्र नियमित था।

शोध बतलाते हैं कि जितना अधिक आप वसा का सेवन करती हैं, उतना ही अधिक आपका शरीर एस्ट्रोजन का निर्माण करता है। साथ ही फाइबर शरीर को अतिरिक्त एस्ट्रोजन को साफ करने में मदद करता है। लीवर पित्त नली और आंत्र मार्ग के माध्यम से रक्त में से एस्ट्रोजन को खींचता है, जहां फाइबर इसे सोख लेता है और शेष को कचरे के रूप में शरीर से बाहर निकाल देता है। 

अल्प समय में बहुत सारा वजन बढ़ाना या कम करना भी आपके मासिक धर्म चक्र को प्रभावित कर सकता है। ऐसी महिलाएं जोकि एनोरेक्सिक या बुलिमिक हैं अक्सर एमोहेरिया का विकास करेंगी, जिसका अर्थ है कि वे लगातार अपने तीन या अधिक माहवारी से चूक गयी हैं। आमतौर पर यह शरीर की वसा की क्षति एवं एस्ट्रोजन के निर्माण में धीमी उन्नति के कारण होता है, लेकिन बहुत ज्यादा वजन बढ़ाने से भी इसी तरह के प्रभाव सामने आते हैं।

ब्लोटिंग को कम करें



पीरियड्स के दुर्भाग्यपूर्ण लक्षण, आहार में परिवर्तन ब्लोटिंग के संकेतों एवं असहजता को कम करने में मदद करेंगे।

1). प्रतिदिन पोटेशियम से समृद्ध आहार लें जैसे जैसे बैरी, केले और अन्य ताजे फल।



२). प्रतिदिन सोडिम की मात्रा 2000 मिलीग्राम से कम कर दें। ज्यादा नमक खाने से शरीर से ज्यादा पानी निकलेगा, जिससे सूजन आयेगी।



3). प्रचुर मात्रा में पानी पिएं। इससे आपके शरीर को नमक तथा अन्य इलेक्ट्रोलाइट्स आपके शरीर से बाहर करने और पानी प्रतिधारण को कम करने में मदद मिलेगी।



4). यदि आपकी ब्लोटिंग वास्तव में खराब है, तो वाटल पिल्स एवं डाइट्रिक्स कुछ राहत प्रदान कर सकती हैं।

समान्य योनी संक्रमण:

‘योनिशोध’’ (वेजीनिटीज) एक चिकित्सीय शब्द है जोकि यौनि में संक्रमण या सूजन होने की विभिन्न स्थितियों को वर्णित करता है। वल्वो वेजीनिटीज योनि एवं भग (महिला का बाहरी जननांग) दोनों की सूजन का उल्लेख करता है। ये स्थितियां यौनि में संक्रमण होने के परिणामस्वरूप होती हैं और इन संक्रमणों का कारण जीवाणु, यीस्ट और विषाणु होते हैं, साथ ही साथ इस क्षेत्र में क्रीम, स्प्रे या कपड़े के सम्पर्क से उत्पन्न जलन होने के कारण भी यह स्थितियां पैदा होती हैं। कुछ स्थितियों में, योनिशोध यौन साथी से प्राप्त जीवों के कारण भी होता है

योनि संक्रमण के क्या लक्षण हैं?
संक्रमण के कारण पर निर्भर कर लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। कुछ महिलाओं को बिल्कुल भी लक्षण दिखलाई नहीं पड़ते। योनिशोध के सामांय लक्षणों में शामिल हैंः

1. अप्रिय गंध के साथ असमान्य योनि स्राव
2. पेशाब के दौरान जलन
3. योनि के बाहर चारों ओर खुजली
4. संभोग के दौरान तकलीफ

योनि संक्रमण के सबसे समान्य प्रकार क्या हैं?
योनि संक्रमण के 6 सामांय प्रकार हैं:

1. केनडिडा या ‘‘यीस्ट’’ संक्रमण
2. बैक्टीरियल वेजिनोसिस
3. ट्राइकोमानाइसिस योनिशोध
4. क्लैमाइडिया योनिशोध
5. वायरल योनिशोध
6. गैर-संक्रामक योनिशोध


योनिशोध के इन 6 मुख्य कारणों को आप बेहतर ढंग से समझाने के लिए हम आपको इनमें से प्रत्येक के बारे में संक्षिप्त जानकारी दे रहे हैं। साथ ही हम यह भी बतायेंगे कि इनका इलाज कैसे किया जा सकता है।

केनडिडा या योनि ‘‘यीस्ट’’ संक्रमण क्या होता है?
जब अधिकांश महिलाएं ‘‘योनिशोध’’ शब्द की बात करती हैं, तो यह योनि का यीस्ट संक्रमण होता है। कवकों की अनेक प्रजातियांे में से एक के कारण योनि यीस्ट संक्रमण होता है, जिसे केनडिडा कहते हैं। केनडिडा अल्प मात्रा में योनि में होता है, और इसी के साथ-साथ पुरूषों और महिलाओं दोनों के मुंह और पाचन तंत्र में भी होता है।
यीस्ट इंफेक्शन निरंतर एक मोटा, श्वेत योनि स्राव पैदा कर सकता है हालांकि योनि स्राव हमेशा ही नहीं होता। यीस्ट इंफेक्शन से अक्सर योनि में लालपन और खुजली होती है।


क्या योनि यीस्ट संक्रमण (वेजिनल यीस्ट इंफेक्शन) यौन सम्बन्ध बनाने से संचारित होते हैं?
यीस्ट संक्रमण आमतौर पर यौन सम्बन्ध बनाने से संचारित नहीं होते हैं और इनको यौन संचारित बीमारी नहीं माना जा सकता।

आपके योनि यीस्ट संक्रमण (वेजिनल यीस्ट इंफेक्शन) बढ़ने के क्या कारक होते हैं?
आपके योनि यीस्ट संक्रमण (वेजिनल यीस्ट इंफेक्शन) के जोखिम बढ़ने के कारणों में निम्नलिखित शामिल हैंः


1. हाल ही में एंटीबायोटिक दवाओं से उपचार करवाने पर। उदाहरण के लिए, किसी संक्रमण के इलाज के लिए कोई महिला एंटीबायोटिक का सेवन करती है और एंटीबायोटिक उन अनुकूल बैक्टीरिया को भी मार देता है जोकि आमतौर से उसके यीस्ट को संतुलन में रखता है। परिणामस्वरूप, यीस्ट बढ़ता जाता है और संक्रमण पैदा करता है।
2. अनियंत्रित मधुमेह। इससे पेशाब और योनि में बहुत ज्यादा शुगर हो जाती है।
3. गर्भावस्था जिसकी वजह से हॅार्मोन स्तरों में परिवर्तन आता है।

योनि यीस्ट संक्रमण (वेजिनल यीस्ट इंफेक्शन) का इलाज कैसे किया जाए?
यीस्ट संक्रमण का इलाज योनि में रखी जाने वाली दवा से होता है। यह दवा क्रीम या सपोसिटरी के रूप में हो सकती है और इनमें से अनेक बिना डाॅक्टर से परामर्श लिए सीधे मेडिकल स्टोर पर जाकर खरीदी जा सकती हैं। गोली के रूप में मुंह के माध्यम से सेवन की जाने वाली दवा डाॅक्टर के परामर्श से इस्तेमाल की जा सकती है।


योनि यीस्ट संक्रमण (वेजिनल यीस्ट इंफेक्शन) के बचाव के लिए मैं क्या करूं?
यीस्ट संक्रमण से बचाव के लिए, आपको चाहिएः

1. प्राकृतिक फाइबर (काॅटन, लिनेन, सिल्क) से बने ढीले वस्त्र पहनें।
2. चुस्त पेंट न पहनें।
3. डूश (साफ) न करें। (डूश करने से फफूंद को नियंत्रण करने वाले जीवाणु मर सकते हैं)
4. फेमिनिन डियोडरेंट का सीमित उपयोग करें।
5. डियोडरेंट टेम्पाॅन या पैड्स का जरूरत पड़ने के समय पर सीमित इस्तेमाल करें।
6. गील कपड़ों को विशेषकर स्नान करने के कपड़ों को जितना जल्दी संभव हो बदल लें।
7. अक्सर हाॅट टब बाथ लेने से बचें।
8. अंडरवीयर को हाॅट वाटर से धोएं।
9. संतुलित आहार लें।
10. दही का सेवन करें।
11. यदि आपको शुगर हो, तो जितना संभव हो अपने ब्लड शुगर लेवल को नार्मल रखें।


यदि आपको अक्सर यीस्ट संक्रमण होने लगे, तो डाॅक्टर को अपनी समस्या बताएं। डाॅक्टर कुछ टेस्ट करेंगे जिससे कि आपको अन्य दवा स्थितियों पर रखा जा सके।

बैक्टीरियल वेजिनोसिस क्या होता है?
हालांकि जब अधिकांश महिलाएं योनि संक्रमण (वेजिनल इंफेक्शन) के बारे में सोचती हैं, तो ‘‘यीस्ट’’ नाम सर्वाधिक उनके मुंह पर आता है। प्रजनन उम्र में महिलाओं में बैक्टीरियल वेजिनोसिस सबसे आम प्रकार का योनि संक्रमण (वेजिनल इंफेक्शन) होता है। योनि संक्रमण (वेजिनल इंफेक्शन) अनेक बेक्टीरिया के मिश्रण से होता है। जब योनि संतुलन (वेजिनल बेलेंस) बिगड़ जाता है, तो ये जीवाणु (बैक्टीरिया) उसी प्रकार अत्यधिक मात्रा में विकसित होते हैं जिस प्रकार केनडिडा की स्थिति में विकसित होते हैं। इस अत्यधिक विकास का कारण ज्ञात नहीं है।

क्या यौन सम्बन्ध बनाने से बैक्टीरियल वेजिनोसिस संचारित होता है?
यौन सम्बन्ध बनाने से बैक्टीरिया वेजिनोसिस संचारित नहीं होता लेकिन उन महिलाओं में अधिक सामान्य होता है जोकि यौनरूप से सक्रिय होती हैं। साथ ही यह कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या नहीं है लेकिन एक महिला से दूसरे को यौन सम्बन्ध बनाने से संचारित होने के जोखिम को बढ़ा सकती है और साथ ही सर्जरी प्रक्रियाओं के बाद श्रोणि सूजन बीमारी (पेलविक इन्फ्लेमेटरी डिसीज) जैसे गर्भपात और गर्भाशय के जोखिम को भी बढ़ा सकती है। गर्भावस्था के दौरान जिन महिलाओं को संक्रमण है, उनमें जल्दी प्रसव और समय से पहले जन्म का खतरा बढ़ जाता है। हाल ही में किए गए शोध इस रिश्ते को सहयोग नहीं करते।

बैक्टीरियल बेजिनोसिस के क्या लक्षण हैं?
बैक्टीरियल वेजिनोसिस से ग्रस्त 50 प्रतिशत महिलाओं को किसी तरह के लक्षण नहीं होते हैं। अधिकांश महिलाओं को अपना वार्षिक प्रसूति परीक्षण करवाने पर इस संक्रमण का पता चलता है। लेकिन यदि कोई लक्षण दिखलाई पड़ते हैं, तो उनमें निम्नलिखित शामिल हैं.

1. श्वेत या रंगहीन स्राव
2. ऐसा स्राव जिसमें मछली जैसी गंध आती है और अक्सर यौन सम्बन्ध बनाने के बाद बहुत तीव्र होती है।
3. पेशाब के दौरान दर्द
4. योनि में खुजली और दर्द।

बैक्टीरियल वेजिनोसिस की पहचान कैसे की जा सकती है?
यदि आपको बैक्टीरियल वेजिनोसिस है, तो आपके डाॅक्टर आपको जानकारी देंगे। यदि आपकी जांच करेंगे और आपकी योनि से द्रव का नमूना लेंगे। सूक्ष्मदर्शी से इस नमूने की जांच की जायेगी। अधिकांश मामलों में, यदि आपको बैक्टीरियल वेजिनोसिस है, तो आपके डाॅक्टर आपको तुरंत सूचित कर देंगे।

बैक्टीरियल वेजिनोसिस का क्या इलाज है?
बैक्टीरियल वेजिनोसिस का इलाज डाॅक्टर द्वारा सुझायी गईं दवाओं से ही संभव है। केवल मेडिकल स्टोर से मांग कर खरीदी जाने वाली दवा से बैक्टीरियल वेजिनोसिस का इलाज नहीं होगा। बैक्टीरियल वेजिनोसिस से सबसे आमतौर से सुझायी गयीं दवाएं मेट्रोनिडाजोल (फ्लेगाइल) और क्लींडामाइसीन (सिलोसिन) है। इन दवाओं को गोली के रूप में लिया जा सकता है या फिर क्रीम या जैल के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

यदि मैं गर्भवती हूं, तो क्या बैक्टीरियल वेजिनोसिस के लिए मेरा इलाज हो सकता है?
हां। लेकिन गर्भावस्था के पहले तीन महीनों के दौरान बैक्टीरियल वेजिनोसिस की दवाओं का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। यदि आप गर्भवती हैं, तो अपने डाॅक्टर को सूचित करें। साथ ही यदि आप गर्भवती हो सकती हैं, तो भी अपने डाॅक्टर को जानकारी दें। आप और आपके डाॅक्टर विचार-विमर्श कर यह तय करेंगे कि संक्रमण का इलाज किया जाना चाहिए अथवा नहीं।

बैक्टीरियल वेजिनोसिस से मैं अपना बचाव कैसे कर सकती हूं?
बैक्टीरियल वेजिनोसिस से बचाव के तरीके अभी तक ज्ञात नहीं हैं। स्त्री स्वच्छता (फीमेल हाइजीन) उत्पाद जैसे डाउस और डियोडरेंट से इस संक्रमण का इलाज संभव नहीं है। इन उत्पादों से तो संक्रमण और बदतर हो सकते हैं।

मुझे डाॅक्टर से कब सम्पर्क करना चाहिए?
आप किसी भी समय डाॅक्टर से सम्पर्क कर सकती हैं, यदिः

1. यदि आपकी योनि से निकलने वाले स्राव का रंग बदल रहा है, स्राव भारी हो जाता है या भिन्न-भिन्न तरीके की गंध आती है।
2. आपको योनि के आसपास खुजली, जलन, सूजन या दर्द का अनुभव होता है,मासिक शीघ्र आ रहा है.

निजी स्वच्छता

स्वच्छता एवं अच्छी आदतें आमतौर पर संक्रमण के विरूद्ध एक बचाव की विधि माने जाते हैं। व्यापक वैज्ञानिक संदर्भ में, स्वच्छता स्वास्थ्य एवं स्वस्थ रहन-सहन का रखरखाव है। स्वच्छता की सीमाएं घरेलु दायरें में निजी स्वच्छता से लेकर व्यावसायिक स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य तक है। स्वच्छता में स्वस्थ आहार, साफ-सफाई, और मानसिक स्वास्थ्य शामिल है। खुद को बीमारी से दूर रखने का सबसे प्रभावी तरीका एक अच्छी निजी स्वच्छता बनाकर रखना है। इसका अर्थ सिर्फ अपने शरीर को साफ रखना ही नहीं है। स्वच्छता का अर्थ छींक और खांसी से सावधान रहना, जब आप बीमारी होती हैं, तो उन चीजों को धोना जिन्हें आप छूती हैं, कूडेदान में टिश्यू (जिसमें रोगाणु हो सकते हैं) को फेंकना, जब आप संक्रमित होने के जोखिम पर हों, तो बचावकारी उपकरण (जैसे दस्तानें या कोंडम) इस्तेमाल करना। निजी स्वच्छता में शामिल हैं स्वास्थ्य व्यवहार जैसे नहाना, अपने बालों को धोना, अपने दांतों को साफ करना, और अपने कपड़ों को साफ रखना। अच्छी स्वच्छता बनाए रखकर आप संक्रमण से लड़ते हैं क्योंकि स्वच्छता आपकी त्वचा (स्किन) पर जीवाणुआंे (बैक्टीरिया) को विकसित नहीं होने देती।
मुंह की देखभाल - मुंह में खाद्य पदार्थों के अंश नुकसान पहुंचाते हैं और जीवाणुओं को विकसित होने का कारण बनते हैं, जिससे व्यक्ति की सांस से बदबु आती है। ये जीवाणु दांतों को भी क्षति पहुंचा सकते हैं और दांतों में छिद्र (केविटी) होने का कारण भी बन सकते हैं। अपने दांतों को कम से कम दिन में दो बार ब्रुश जरूर करें। एक बार सुबह और एक बार सोते समय। कुछ लोग तो कुछ भी खाने के तुरंत बाद अपने दांतों को साफ करते हैं। दांतों को 2-3 मिनट तक ब्रुश करने की सलाह दी जाती है। प्रत्येक 2 महीने में टूथब्रुश को बदल देना चाहिए। टूथब्रुश पर थोड़ी सी मात्रा में टूथपेस्ट लें और एक बार में कुछ दांतों को हल्के से ब्रुश करें। ब्रुश करने के बाद, आपको अपने मुंह को पानी से धोना चाहिए। टूथपेस्ट को निगले नहीं।
शारीरिक गंध
हमारा शरीर दो प्रकार के पसीने को उत्पन्न करता है: उत्सर्गी और शिखरस्रावी। शिखरस्रावी शरीर की गंध है। यह कमर और बगलों में पायी जाती है। जब पसीने से तर गंध उत्पन्न होती है तभी शिखरस्रावी गंध हमारे शरीर पर जीवाुणओं से प्रतिक्रिया करती है। दूसरों की अपेक्षा हम में से कुछ अधिक सक्रिय शिखरस्रावी ग्रंथियों से ग्रस्त रहते हैं। और हम में से कुछ अपने शरीर के जीवाुणओं से छुटकारा पाने में सफल नहीं हो पाते हैं। 
इन सुझावों पर अम्ल करें:
1. सेफगार्ड या डायल जैसे एंटीबैक्टीरियल साबुन से दिन मंे कम से कम एक बार स्नान जरूर करें। यदि समस्या से जल्दी निजात न मिले, तो pHisoHex जैसे निर्देशित साबुन का इस्तेमाल कर सकती हैं।
2. एल्युमीनियम या जिंक वाले डियोडरेंट का उपयोग करें। ये दोनों ही मेटल गंध से उत्पन्न जीवाणुओं को मार देते हैं। ऐसी महिलाएं जिन्हें बहुत ज्यादा पसीना आता है, को एल्युमीनियम क्लोराइड निहित पसीना-रोधी/डियोडरेंट का इस्तेमाल करना चाहिए। 
3. अक्सर कपड़ों को धोएं। भले ही आप कितनी व्यस्त क्यों न हों। साफ-सफाई तो बहुत जरूरी है। गंध से लड़ने वाले डिटर्जेंट जैसे टाइड का इस्तेमाल कर घर पर ही कपड़े धोए जाएं।
4. दिन के दौरान, जितनी बार जरूरी हो, बाथरूम में जाकर शरीर को तौलिये से साफ करें।
हाथ साफ रखना
1. अधिकांश संक्रमण विशेषतौर से ठंड और आंत्रशोध तब हमें चपेट में ले लेते हैं, जब हम अपने हाथों धोते नहीं हैं। आमतौर पर हाथों पर रोगाणु होते हैं। हाथ और कलाइयां साफ साबुन और पानी से से धोने चाहिए, यदि आपकी उंगलियों के नाखून गंदे हैं, तो ब्रुश का इस्तेमाल करें। किसी साफ वस्तु से अपने हाथों को सुखाएं जैसे पेपर टॉवल या या हॉट एयर ड्रायर। 
आपको हमेशा हाथ धोने चाहिए:
1. टोइलेट जाने के बाद 
2. खाना पकाने और खाने से पहले
3. कुत्तों और अन्य जानवरों को संभालने के बाद
4. यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति के आसपास हैं जिसे खांसी या ठंड लगी हुई है।
बाल
जैसा कि बाल निरंतर झड़ते रहते हैं इससे खाना दूषित हो सकता है इसीलिए खाने पकाने वाली महिला को अपना सिर एक उपयुक्त वस्त्र से ढक लेना चाहिए जोकि पीठ के पीछे से पर्याप्त तरीके से बंधा हो। बालों को काढ़ना और समायोजित करने की प्रक्रिया खाना तैयार करने और संभालने के क्षेत्र में न की जाए। 

त्वचा की देखभाल
त्वचा को साफ रखने के लिए साबुन और पानी आवश्यक हैं। भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में दिन में एक या दो बार स्नान करने की सलाह दी जाती है। ऐसे लोग जोकि खेल की गतिविधियों में या ऐसी गतिविधियों में जिसमें शरीर से पसीना निकलता है, उन्हें इन गतिविधियों के बाद स्नान करना चाहिए। एक अच्छा साबुन शरीर को स्वच्छ रखने में कारगर साबित होगा। जर्मीशिडल या एंटीसेप्टिक साबुन दैनिक स्नान के लिए आवश्यक नहीं हैं। शरीर को रगड़ने के लिए आप बाथ स्पंज का इस्तेमाल कर सकते हैं। बैक ब्रुश और हील स्क्रबर्स भी उपलब्ध हैं। लेकिन घर्षण वाली सामग्री का उपयोग न करें। एक साफ तौलिया से सुखाना बहुत जरूरी है। साबुन और तौलिया अपना ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मध्यम उम्र तक पहुंचते-पहुंचते त्वचा थोड़ी सी रूखी हो जाती है। इसके लिए कोई नमी वाला तेल या क्रीम इस्तेमाल करें। रात में इसका प्रयोग करना बेहतर है, क्योंकि यदि आप धूप में बाहर निकलेंगी या धूली भरी सड़कों पर घूमेंगी तो, गीली त्वचा पर धूल चिपक जायेगी और धूप में निकलने से त्वचा भी भूरी हो जायेगी। 
नाखून की देखभाल
नाखून को बदलने में पांच महीने लगते हैं। अपने नाखून तब ही बढ़ाएं जब आप उनको साफ रख सकती हैं। छोटे नाखूनों से ज्यादा परेशानी नहीं होती है। छोटे नाखूनों को एक अच्छा आकार दिया जा सकता है। उन्हें इतना छोटा भी न काटें कि ये आपकी त्वचा में चुभें। एक स्वस्थ शरीर स्वस्थ नाखूनों की निशानी होता है। बहुत ही नाजुक या रंगहीन नाखून शरीर में किसी कमी या बीमारी की स्थिति को इंगित करते हैं।
मासिक धर्म स्वच्छता
कोई भी महिला माहवारी के दौरान पूरी तरह से सहज महसूस नहीं करती है। उन्हें किसी न किसी तरह की दिक्कत का सामना करना पड़ता है। यदि प्री मेनेस्ट्राॅल तनाव या पेड में ऐंठन की दिक्कत नहीं है, तो मासिक धर्म प्रवाह की समस्या हो सकती है। इन दिनों में साफ-सफाई (धुलाई) पर ध्याना देना महत्वपूर्ण होता है। इन दिनों में स्नान पर रोक नहीं लगानी चाहिए। कुछ महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान गंध की समस्या का सामना करना पड़ता है। स्वच्छता और जितना जल्दी संभव हो पैड बदलना इसका समस्या को कम कर सकता है। पर हम आपको सलाह देंगे कि आप परफ्यूम वाले पैड्स इस्तेमाल न करें। वास्तव में, जननांग क्षेत्रों में पाउडर का इस्तेमाल न करें। 
निजी स्वच्छता बनाए रखने के लिए इन बुनियादी बातों को अपने दिमाग में रखना बहुत जरूरी है। खुद को साफ रखने के साथ ही अपना घर भी साफ-सुथरा रखना जरूरी है। आजकल निजी स्वच्छता बनाए रखना एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन गया है। आजकल लोग ज्यादा सतर्क हो गए हैं और जो भी उनकी वर्तमान स्थिति है, वे उसे बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं।
मूत्राशय (ब्लैडर) से सम्बन्धित जानकारियां:

अधिकांश महिलाएं जब 40 की उम्र पर पहुंच जाती हैं, तो वे इतनी शर्मीली होती हैं कि अपनी मूत्राशय (ब्लैडर) की समस्याओं को किसी साथ साझा करने में उन्हें हिचक महसूस होती है। यहां तक कि डाॅक्टर के सामने भी वह अपनी समस्या नहीं रख पाती हैं। मूत्राशय सम्बन्धित जिन समस्याओं का महिलाओं को सामना करना पड़ता है उनमें शामिल हैं पेशाब का रिसना, अतिसक्रिय मूत्राशय की वजह से अक्सर पेशाब आना और पेशाब सम्बन्धी असयंमता के अन्य लक्षण। महिलाओं में ये मूत्राशय की समस्याएं बच्चों को जन्म देने के परिणामस्वरूप या उम्र बढ़ने का प्राकृतिक हिस्सा हो सकती हैं। हालांकि, मूत्रविज्ञान एवं प्रसूतिशास्त्र के क्षेत्रों में नई-नई तकनीकियां मूत्राशय की समस्याओं से पीडि़त महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा मदद की पेशकश कर रही हैं।

25-40 वर्ष की उम्र की महिलाओं में सामान्य मूत्राशय की समस्याएं
1. मूत्र रिसाव- अधिकांश महिलाओं को अनियंत्रण का अनुभव होता है। जब वे व्यायाम करती हैं, जोर से हंसती हैं, खांसती हैं या छींकती भी हैं, तो उनका मूत्र रिसाव हो जाता है। गर्भवती महिलाओं को मूत्र रिसाव की शिकायत होती है और साथ ही ऐसी महिलाएं जो रजोनिवृत्ति की स्थिति में पहुंच गयी हैं, उनको भी इस प्रकार की मूत्राशय नियंत्रण सम्बन्धी शिकायतें होती हैं। कड़ी खेल-कूद गतिविधियों के कारण, सभी उम्र की महिला खिलाडि़यों को कभी-कभी मूत्राशय रिसाव की समस्या होती है।
2. अचानक तेजी से पेशाब की अनुभूति होने पर यह अनियंत्रण होता है। यह मूत्राशय नियंत्रण की समस्या है और मधुमेह, स्ट्रोक, संक्रमण या किसी अन्य चिकित्सीय स्थिति से तंत्रिका (नर्व) की क्षति के कारण भी ऐसा हो सकता है।
3. मिश्रित अनियंत्रण तनाव एवं पेशाब आने की तीव्र अनूभूति के परिणाम स्वरूप होता है। रिसाव होने से पहले अचानक अनियंत्रित पेशाब आने की अनुभूति होती है।
4. यदि चलने-फिरने की समस्याओं के कारण पेशाब रिसने की समस्या है, तो यह शरीर की कार्यात्मकता सम्बन्धी शिकायत है।
5. एक अतिसक्रिय मूत्राशय में दिन में आठ या उससे अधिक बार पेशाब आने की अनभूति होती है। गर्भवती महिलाएं अस्थाईतौर से अतिसक्रिय मूत्राशय से पीडि़त हो सकती हैं जिसका कारण हाॅर्मोनल परिवर्तन और मूत्र मार्ग पर विकसित होते गर्भाशय के खिंचाव का दबाव है।
6. मूत्राशय में पीड़ा, पेशाब करने की जरूरत और पेशाब कर पाने में असमर्थता, युरीन स्ट्रीम का कमजोर होना और मूत्राशय को पूरी तरह से खाली न कर पाने की असमर्थता महिलाओं की अन्य मूत्राशय समस्याएं हैं।


यह समझ लें कि ऊपर वर्णित मूत्राशय सम्बन्धी असयंमताएं कोई बीमारी नहीं हैं। यह एक चिकित्सीय समस्या है जिसमें डाॅक्टर की मदद की जरूरत है।

आमतौर पर जब महिलाएं 45 की उम्र पर पहुंचती हैं, तो अतिसक्रिय मूत्राशय, मूत्राशय की दीवार में अचानक मांसपेशियों के स्वैच्छिक संकुचन होने के कारण होता है। अतिसक्रिय मूत्राशय मूत्र के अचानक एवं न रूकने वाली तत्कालिता के कारण होता है। अतिसक्रिय मूत्राशय अन्यों के बीच सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, व्यावसायिक एवं यौन समस्याओं का कारण बनता है। बारबार मूत्र आना और मूत्र की तत्कालिता को इस स्थिति के लक्षणों के रूप में निर्धारित किया जा सकता है।

अतिसक्रिय मूत्राशय के कारण
मूत्राशय असंयमता आवश्यक नहीं है कि वृद्धावस्था में हो, यह किसी भी उम्र में हो सकती है। यह समझ लेना चाहिए कि मूत्राशय असंयमता कोई बीमारी नहीं है। यह एक चिकित्सीय समस्या है और डाॅक्टर की मदद कारगर होती है।
यह एक ऐसा लक्षण है जोकि अन्य स्थितियों जैसे शुगर, स्ट्रोक, एकाधिक सिरोसिस और नर्व (तंत्रिका) बीमारियों की वजह से हो सकता है। उम्र, बीमारी और चोट के साथ स्थिति बदतर हो सकती है। अतिसक्रिय मूत्राशय नर्व (तंत्रिका) या मस्तिष्क से सम्बन्धित बीमारी जैसे पारकिनसंस बीमारी की शिकायत से विकसित हो सकती है। योनि या मूत्र मार्ग के संक्रमण या कब्ज से मूत्राशय असंयमता के अस्थाई लक्षण पैदा हो सकते हैं। कुछ दवाएं भी अतिसक्रिय मूत्राशय समस्याओं का कारण बनती हैं।

अतिसक्रिय मूत्राशय के लक्षण
मूत्र आने की तत्कालिता एवं शौच जाने में असमर्थता सबसे प्रमुख लक्षण हैं। शौच जाने से पहले ही महिला को मूत्र रिसाव हो जाता है। मूत्र की बारंबारता, एक दिन में सात बार से अधिक और रात में दो बार से अधिक मूत्र आना अन्य लक्षण हैं। निशामेह (नोकटूरिया) और रात में एक से अधिक बार शौच जाना अतिसक्रिय मूत्राशय के अन्य लक्षण हैं। तनाव से लक्षण बदतर हो सकते हैं और चाय, काॅफी, कोला और एल्कोहल का सेवन करने से कैफिन के कारण अधिक बदतर हो सकते हैं।

महिलाओं में मूत्राशय की समस्याओं का इलाज
आंकड़े बतलाते हैं कि मूत्राशय असंयमता का इलाज कराने वाली 10 में से 8 महिलाओं के रोग में सुधार आता है या रोग ठीक भी हो जाता है। अतिसक्रिय मूत्राशय के इलाज विकल्प रोगी की स्थिति पर निर्भर करते हैं।

कुछ निर्देशित इलाज नीचे दिए जा रहे हैं:
1. पेल्विक मांसपेशी पुनर्वास पेल्विक मांसपेशी टोन में सुधार लाने के लिए और युरीन के लीकेज को रोकने के लिए अपनाया जाता है।
2. नियमित व्यायाम से पेल्विक मसल्स में सुधार आ सकता है और मूत्र असंयमता को विशेषकर, युवतियों में, रोका जा सकता है।
3. जागरूकता लाने के लिए एवं पेल्विक मसल्स के नियंत्रण के लिए पेल्विक एक्सरसाइज के साथ बायोफीडबैक का अक्सर इस्तेमाल किया जाता है।
4. योनि भार प्रशिक्षण एक ऐसी तकनीक है जिसमें योनि की मांसपेशियों को कसकर योनि के छोटे-छोटे भार लिए जाते हैं।
5. पेल्विक फ्लोर इलेक्ट्रिकल स्टीमुलेशन (उत्तेजना) मांसपेशियों के संकुचन में मदद करता है और अन्य व्यायाम के साथ संयोजन के रूप में किया जाना चाहिए।
6. व्यवहार थेरेपी को अपनाया जा सकता है जो ब्लैडर पर नियंत्रण प्राप्त करने में सहायक हो सकती है। ये खाली अंतराल के बीच इच्छा का प्रतिरोध करने तथा स्वतः उसे बढ़ाने में सहायता करते हैं।
7. कुछ दबाएं अति क्रियाशील ब्लैडर के लिए संयम में सुधार लाने के लिए प्रयोग की जा सकती है। इस्ट्रोजन या तो मौखिक या योनि मार्ग से अन्य उपचारों के साथ मिलकर उन महिलाओं के लिए लाभदायक हो सकती है जिनका मासिक धर्म बंद हो चुका हो। फिर भी, इनका प्रयोग किसी चिकित्सक के परामर्श पर ही किया जाना चाहिए।
8. कुछ सामान्य आहार और जीवन शैली संबंधी कदम भी अति क्रियाशील ब्लैडर के विनियमन में सहायक हो सकते हैं।
9. चाय, काॅफी, कोला में मौजूद कैफीन मूत्रवर्धक प्रभाव डालते हैं और तत्कालीनता संबंधी लक्षणों को बदत्तर बनाने के लिए ब्लैडर को उत्तेजित करते हैं।
10. मदिरापान को बंद करने की सलाह दी जाती है क्योंकि कैफीन वाली पेय पदार्थों जैसा ही सिद्धांत यहां भी लागू होता है।
11. जबकि कुछ लोग सोचते हैं कि तरल पदार्थों को कम मात्रा में ग्रहण करना समझदारी होगी, पर इसकी सलाह नहीं दी जाती क्योंकि इससे मूत्र अधिक गाढ़ा होकर ब्लैडर की मांसपेशियों में जलन उत्पन्न कर सकता है। सलाह दी जाती है कि प्रतिदिन सामान्य मात्रा में पेय पदार्थों का सेवन करना चाहिए। आमतौर पर 6 से 8 गिलास पेय पदार्थों का सेवन करना चाहिए तथा गर्मी के मौसम में शायद इससे ज्यादा।
12. ब्लैडर प्रशिक्षण जिसे ‘ब्लैडर ड्रिल‘ कहा जाता है, इसका लक्ष्य ब्लैडर को खींचकर ज्यादा मात्रा में मूत्र को रोकना होता है। समय के साथ-साथ, ब्लैडर की मांसपेशियों की क्रियाशीलता कम हो जाती है और अधिक ब्लैडर नियंत्रण प्राप्त हो जाता है।
13. अगर अति क्रियाशील ब्लैडर सिंड्रोम का उपचार उपरोक्त उपचारों द्वारा सफलतापूर्वक नहीं हो पाता तो शल्य चिकित्सा करने की आवश्यकता पड़ती है। जिन शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जा सकता है उनमें शामिल हैं -
14. सैकरल नर्व स्टीम्युलेशन जहां ब्लैडर में कुछ लगा दिया जाता है जो उसे समानता और सामान्यतः सिकुड़ने में सहायता करता है।
15. आगमेंटेशन साईटोप्लासटी एक प्रक्रिया जिसके आंतों से तंतु का एक टुकड़ा लेकर ब्लैडर की दीवार में लगाया जाता है जिससे ब्लैडर का आकार बड़ा हो जाता है। इस शल्य चिकित्सा के बादा मूत्र सामान्य तौर पर त्यागा जा सकता है।
16. यूरिनरी डाईवर्जन एक ऐसी शल्य चिकित्सा है जो यूटरस से ब्लैडर तक सीधा मार्ग बनाती है, यह शरीर से बाहर इस प्रकार होता है ताकि मूत्र ब्लैडर में न जाए। यह विभिन्न प्रकार से किया जाता है तथा इसे तभी अपनाया जाता है जबकि अन्य विकल्प अति क्रियाशील ब्लैडर सिंड्रोम का उपचार करने में असफल रहते हैं।

स्तन कैंसर की पहचान कैसे करें?

स्तन कैंसर की पहचान आरिम्भक अवस्था में कैसे की जाए!स्तन कैंसर दुनियाभर की महिलाओं को परेशान करने वाले शीर्ष दस कैंसरों में से एक है। जैसे-जैसे किसी महिला की उम्र बढ़ती जाती है, इस बीमारी के बढ़ने का खतरा भी बढ़ता जाता है। हालांकि, अन्य कैंसरों की अपेक्षा, स्तन कैंसर के आरम्भिक लक्षणों की पहचान करना आसान है।

यह जरूरी है कि आपके पास इस रोग के बारे में पूरी जानकारी हो। अपना बचाव करने के लिए, आप सर्तक रहें कि कहीं आपको स्तन कैंसर के इन आरम्भिक लक्षणों का अनुभव तो नहीं हो रहा हैः
1) स्तन में कोमलता - अधिकांश महिलाओं को अपने मासिक धर्म चक्र के दौरान अपने स्तन में कोमलता का अनुभव होता है, लेकिन शेष दिनों में ऐसा होना स्वाभाविक नहीं है। यदि आपको ऐसा अनुभव होता है, तो शायद आपको स्तन-जांच (मेम्मोग्राम) करवा लेनी चाहिए।
 
2) स्तन में असामान्य गांठ- स्तन कैंसर के सबसे सामांय आरम्भिक लक्षणों में से एक स्तन में आसामान्य गांठ का होना है। महिलाओं को खुद अपना स्तन जांच करने की जानकारी प्रदान की जाती है, जिससे कि वे स्तन के भीतर या बगल में किसी तरह की सतह के उभरने (गुमड़ा बनने) को अनुभव कर सकें। यह गांठ हलकी/मामूली हो सकती है लेकिन घातक भी हो सकती है। इसलिए आपको लापरवाही नहीं करनी चाहिए और तुरंत डाॅक्टर को दिखाना चाहिए।
 
3) चूचुक (निप्पल) से निर्वहन (स्राव निकलना) - स्तन कैंसर के प्रथम कुछ चरणों के दौरान, आप अपने चूचुक (निप्पल) से कुछ विचित्र स्राव निकलने का अनुभव कर सकती हैं। यह स्राव रक्त जैसा, पीला या हरा हो सकता है। इस स्राव का रंग भले ही कैसा हो, आप तुरंत डाॅक्टर से मिलकर अपनी स्थिति की जानकारी दें। स्तन कैंसर बहुत तेजी से बढ़ता है, इसीलिए जितना जल्दी इस पर गौर किया जाए, उतना बेहतर है।
 
4) स्तन में सूजन- महिलाओं को अपने मासिक धर्म चक्र के दौरान, स्तन में कोमलता की ही तरह, स्वाभाविकतौर से सूजन का भी अनुभव हो सकता है। यही कारण है कि डाॅक्टर मासिकतौर पर अपने स्तनों की स्वयं जांच करने पर जोर देते हैं। इस प्रकार आप देख सकती हैं कि आपके स्तन के आकार में कितना परिवर्तन है, और यदि आपको स्तन कैंसर का कोई आरम्भिक लक्षण दिखलाई पड़े, तो तुरंत अपनी जांच (चेक-अप) करवाएं।
 
5) बनावट में परिवर्तन - मासिकतौर पर अपने स्तनों की स्वयं जांच करने पर आप यह भी निर्धारण कर सकती हैं कि कहीं आपके स्तनों की बनावट में कोई परिवर्तन तो नहीं आ गया है। आप यह भी देखंे कि कहीं स्तनों पर लाली या गड्ढा तो नहीं है। यह भी देखंे कि कहीं चूचुक (निप्पल) पर कहीं कोई खिंचाव (कर्षण) या पीयोड ओरेंज तो नहीं है । पीयोड ओरेंज ऐसे स्तन का उल्लेख करता है जोकि स्तन संतरे की तरह दिखता है।
 
यदि कुछ गड़बड़ है, तो आपका शरीर लक्षणों के रूप में आपको सूचित करेगा। तो इस तरह के स्तन कैंसर के आरम्भिक लक्षणों को हलके में न लें। याद रखें, आपका स्वास्थ्य खतरे में है। इलाज से परहेज बेहतर होता है

योनि स्राव

द्रव, कोशिकाएं और जीवाणुओं के मिश्रण से बना, योनि स्राव योनि से होकर बहता है। इससे कई उद्देश्यों की पूर्ति होती है। यह साफ, चिकना, गीला, नियमित रखता है और कीटाणुओं एवं परेशानियों से बचाता है। योनि स्राव या स्राव रोज होता है। जब योनि हिलती ढुलती है, तो सभी पुराने, मृत योनि दीवार कोशिकाएं बाहर आ जाती हैं। यह स्राव आमतौर पर साफ या दूधिया होता है और इसमें कोई असामांय गंध नहीं होती है। योनि स्राव यौवन आने के एक या दो साल पहले शुरू हो जाता है और रजोनिवृत्ति (मेनोपाॅज) के बाद आना बंद हो जाता है। कभी-कभी हल्का और कभी-कभी बहुत ज्यादा योनि स्राव, अंडरवियर में चिपक जाता है, जिससे लड़कियों को असहजता महसूस होती है और पेंटी लाइनर्स के उपयोग की जरूरत होती है। प्रजननकारी उम्र की सभी महिलाओं को योनि स्राव होता है। एक सूखा, योनि माहौल आसामान्य है। जबकि हल्का योनि स्राव प्राकृतिक एवं बहुत सामान्य होता है। योनि स्राव की मात्रा अलग-अलग महिलाओं में अलग-अलग होती है। समय-समय से, योनि स्राव में उतार-चढ़ाव आता है। किशोरियों को अपने पहले मासिक धर्म चक्र से करीबन 6 माह से लेकर 1 वर्ष के पहले तक योनि स्राव का अनुभव होता है। यह मासिक धर्म चक्र के बाद से रजोनिवृत्ति (मेनोपोज) तक निरंतर होता रहता है। जब स्राव का रंग पीला या हरा हो, या फिर यह पनीर की तरह हो या इसमें गंध आए, तो आपको डाक्टर से जांच करवानी चाहिए।

सामान्य योनि स्राव
अगर हम मात्रा की बात करें, तो, सामांय योनि स्राव की मात्रा एक बड़ी चम्मच से ज्यादा नहीं होती है। रंग में, यह साफ से लेकर दूधिया होता है और जब हम बनावट की बात करें तो यह पतला और चिपचिपा होता है और इसमें दुर्गंध नहीं होती है। इससे कोई जलन या खुजली नहीं होती तथा यह अंडरगार्मेंट्स को थोड़ा सा गीला कर देता है। इन सभी में बदलाव आ सकता है। मासिक धर्म, गर्भावस्था, स्तनपान के दौरान, अगर यौन उत्तेजना हो, अगर भावनात्मक तौर पर तनाव हो, पोषाक स्तर में बदलाव, दवा का सेवन करते समय, हाॅर्मोनयुक्त गर्भरोधकों की प्रयोग विधि के कारण, योनि से होने वाले स्राव की मात्रा, वर्ण, संरचना आदि में बदलाव आ सकता है। ये बदलाव पूर्णतः सामान्य हैं। 
1. अंडोत्सर्ग (अंडों के छूटने) की अवधि के दौरान, अगले मासिक धर्म की अवधि से लगभग 14 दिन पहले यह स्राव लगभग 30 गुणा अधिक, पतला और लचलचा होता है।
2. मासिक धर्म के अंत में, स्राव संभवताः चिपचिपा होता है।
3. स्तनपान के दौरान या फिर यदि महिला यौन उत्तेजित हो, तो योनि स्राव ज्यादा होता है
4. यदि महिला गर्भवती है या अच्छी निजी स्वच्छता का अभाव है, तो गंध अलग होगी।
5. मासिक धर्म चक्र के बाद एक या दो दिन स्राव गाढ़ा, भूरा या रंगहीन हो सकता है।
6. अल्प प्रजननक्षम अवधि के दौरान, यह स्राव श्वेत या हल्के पीले रंग का तथा गाढ़ा होता है।

असामान्य योनि स्राव
असामान्य योनि स्राव का अर्थ है योनि में सामान्य जीवाणुओं के संतुलन में परिवर्तन का होना। इसके परिणामस्वरूप स्राव में मात्रा में वृद्धि होती है, असामान्य गंध आती है, योनि में द्रव की स्थिरता में परिवर्तन होता है, दर्द होता है, खुजली या जलन होती है और रंग में परिवर्तन होता है। यह संक्रमण का संकेत हो सकता है या फिर स्वास्थ में किसी गड़बड़ी का। असामांय स्राव से पेड़ु में दर्द और/या बुखार आ जाता है जिसके लिए तुरंत चिकित्सीय ध्यान देने की आवश्यकता होती है। साधारण शब्दों में, यदि किसी महिला को खुद को सामांय एवं सहज महसूस करने के लिए दिन में कई बार पेंटी शील्ड्स के साथ अंडरवीयर को बदलने की आवश्यकता महसूस हो, तो यह समझा जा सकता है कि उसको असामान्य स्राव की शिकायत है। ऐसे समय में आपको डाॅक्टर से सलाह लेनी चाहिए। असामान्य स्राव के कारण अलग-अलग हो सकते हैं। ये इनमें से किसी के कारण भी हो सकता हैः

बैक्टीरियल वेजिनोसिसः
यह जीवाणुओं की पैदावार के असंतुलन के परिणामस्वरूप होता है। ये जीवाणु आमतौर पर योनि में मौजूदा होते हैं जिन्हें कुछ अन्य जीवाणुओं की अधिक संख्या द्वारा हटाया जाता हैं। विध्न पैदा करने के सटीक कारण अज्ञात हैं।
1. लक्षणों में शामिल हैं भूरे रंग का असामांय स्राव, असामांय गंध, योनि में दर्द, खुजली या जलन, विशेषकर पेशाब करने के दौरान, योनि या गर्भाशय में हल्की सी सूजन। 
2. बैक्टीरियल वेजिनोसिस से कोई भी महिला संक्रमित हो सकती है,
3. गर्भावती महिलाओं में बहुत सामांय है, इसके परिणाम स्वरूप प्रीमेच्योर या निम्न भार वाले शिशुओं को जन्म देने की संभावना होती है।
4. अध्ययन से पता चला है कि वहुविध यौन साथी रखने वाली महिलाओं को अधिक खतरा रहता है।
5. पुरूष यौन साथी कम प्रभावित होते हैं, लेकिन बैक्टीरिया वेजिनोसिस महिला साथियों के मध्य फैल सकता है। 
6. डाउचिंग भी संक्रमण में योगदान देता है।
7. प्रयोगशाला परीक्षण के बाद वेजिना को जांचने के बाद, स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता बैक्टीरियल वेजिनोसिस की पहचान कर लेता/लेती है।
8. गर्भवती और गैर-गर्भवती महिलाओं के लिए एक ही तरह की एंटीबायोटिक्स दवाओं से इलाज किया जाता है।
9. इलाज के बाद भी बैक्टीरियल वेजिनोसिस हो सकता है।

वेजिनल यीस्ट इंफेक्शनः
केंडिडा के रूप में जाने वाला एक कवक (फंगस) योनि को संक्रमित करता है। आमतौर पर एक स्वस्थ्य योनि में यीस्ट की थोड़ी सी मात्रा पायी जाती है लेकिन यदि इसका अधिक विकास हो जाए, तो यह वेजिनल यीस्ट संक्रमण का कारण बन सकता है।
इस प्रकार यह सूक्ष्मजीवों के प्राकृतिक संतुलन में गड़बड़ी के परिणाम के कारण है। 
1. लक्षणों में श्वेत, पनीर जैसा स्राव सहित गर्भाशय के आसपास सूजन सहित या रहित गहन खुजली की अनुभूति, संभोग/या पैशाव करने के दौरान दर्द उठना।
2. यह आवश्यक नहीं है कि स्राव में गंध हो। 
3. योनि में यीस्ट की वृद्धि में डाउचिंग, एंटीबायोटिक का उपयोग, कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम), जन्म नियंत्रक गोलियों का सेवन, हार्मोनल परिवर्तन, हार्मोनल थेरेपी का उपयोग योगदान देते हैं।
4. शुगर से ग्रस्त होना, गर्भवती महिला, मेनोपोज की अवस्था में पहुंचने वाली महिलाएं, अधिक वजन जैसी स्थितियां यीस्ट के विकास में आसानी से योगदान देते हैं। 
5. वेजिनल यीस्ट इंफेक्शन अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के संकेत हो सकते हैं। 
6. पेल्विक जांच, सूक्ष्मदर्शी से योनि स्राव को जांचकर लक्षणों की पहचान की जाती है।
7. प्रभावशली इलाज से लक्षण आमतौर पर खत्म हो जाते हैं। 
8. इलाज के बाद अगर संक्रमण तुरंत हो जाये या यीस्ट इंफेक्शन जिस पर कोई इलाज काम न कर सके, तो यह माना जाता है कि कि व्यक्ति एचआईवी से संक्रमित है।

जैसे ही आप अपने जीवन के 45 वसंत पार कर लेती हैं, आपको महिलाओं को होने वाली कुछ और तकलीफों से के प्रति सजग होना पड़ता है। इन तकलीफों से कैसे दूर रहा जाए और एक स्वस्थ जीवन जिया जाए, यह जाने के लिए नीचे लिखे लेखों को पढ़ें। 
आइये विस्तार से समझें मेनोपेाज और पेरीमेनोपोज क्या है?

रजोनिवृत्ति (मेनोपोज) महिला के जीवन में एक ऐसा समय आता है जब उसे 1 साल की अवधि तक माहवारी नहीं होती है। रजोनिवृत्ति (मेनोपोज) बच्चे को जन्म देने की उम्र के समाप्त होने को या दूसरे शब्दों में ‘जीवन में परिवर्तन को’ चिन्हित करता है।
रजोनिवृत्ति (मेनोपोज) 50 की उम्र के आसपास होता है, लेकिन प्रत्येक महिला के शरीर की अपनी समय-सीमा (टाईमलाइन) होती है। कुछ महिलाओं को 40 वर्ष की उम्र के मध्य तक माहवारी (पीरियड्स) होने बंद हो जाती है, तो कुछ को अपनी 50 वर्ष की उम्र तक निरंतर माहवारी (पीरियड्स) होते रहती है।
जबकि, पेरीमोनोपोज परिवर्तन की वह प्रक्रिया है जोकि रजोनिवृत्ति (मेनोपोज) का कारण बनती है। यह 30 के बाद भी शुरू हो सकती है और 50 के आरम्भ में भी। विभिन्न महिलाओं में पेरीमोनोज की विभिन्न स्थितियां होती हैं। लेकिन आमतौर पर इसकी अवधि 2 वर्ष से 8 वर्ष होती है। इस समय के दौरान आपके मासिक धर्म चक्र (पीरियड्स) अनियमित होते हैं या आपको अन्य लक्षण दिखलाई पड़ते हैं।
रजोनिवृत्ति (मेनोपोज) उम्र बढ़ने का एक स्वाभाविक हिस्सा है। यदि आपको आपके लक्षणों से कोई परेशानी नहीं हो रही है, तो आपको इसके लिए किसी तरह के इलाज की जरूरत नहीं है। लेकिन रजोनिवृत्ति के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। आपके जीवन के इस नए चरण के दौरान जानिए कि क्या उम्मीदें आपको ज्यादा से ज्यादा स्वस्थ बनाए रख सकती हैं।


रजोनिवृत्ति का क्या कारण है?
आपके प्रजनन एवं हाॅर्मोन तंत्र में बदलाव के कारण रजोनिवृत्ति होती है। उम्र के साथ जैसे-जैसे आपका शरीर अंडे आपूर्ति करता है, आपकी अंडोत्सर्जन अक्सर कम होता जाता है। आपका हाॅर्मोन स्तर असामान तरीके से कम-ज्यादा होता रहता है, जिसके कारण आपके मासिक धर्म चक्र और अन्य लक्षणों में बदलाव आता है। एक ऐसा समय आता है जब एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन स्तर इतना गिर जाता है कि यह मासिक धर्म चक्र को बंद करने में पर्याप्त होता है।
कुछ चिकित्सीय इलाज 40 वर्ष की उम्र से पहले तक आपके मासिक धर्म चक्र को रोकने का कारण बनते हैं। आपके आॅवरी को हटाना, विकिरिण चिकित्सा या कीमोथेरेपी जल्दी रजोनिवृत्ति का कारण बन सकते हैं।


रजोनिवृत्ति के क्या लक्षण हैं?
आम लक्षणों में शामिल हैं
1. अनियमित माहवारी (पीरियड्स)। कुछ महिलाओं को हल्की माहवारी (पीरियड्स) होती है। अन्यों को भारी रक्तस्राव होता है। आपका मासिक धर्म चक्र अधिक लम्बा या अधिक छोटा हो सकता है, या हो सकता है कि आपको माहवारी (पीरियड्स) न हो।
2. हॉट फ्लेसेज
3. नींद आने में परेशानी (अनिद्रा)
4. भावानात्मक बदलाव। कुछ महिलाओं में जल्दी-जल्दी भाव परिवर्तित होते हैं, उन्हें बड़बड़ाहट, अवसाद और चिंता होती है।
5. सिरदर्द।
6. ऐसा महसूस होता है जैसे कि आपका हृदय तेजी से या असामान तरीके से (घबराहट) धड़क रहा है।
7. चीजों को याद रखने या विचार करने में समस्याएं आती हैं।
8. योनि का सूखापन

कुछ महिलाओं को मामूली से लक्षण होते हैं। अन्य को गंभीर लक्षण होते हैं जिनसे उनकी नींद और दैनिक जीवन बाधित होता है। रजोनिवृत्ति (मेनोपोज) से पहले वर्ष या बाद में लक्षण बने रहते हैं या बदतर हो जाते हैं। एक समय पर, होर्मोनेस निम्न स्तर पर पहुंच जाते हैं, और अनेक लक्षणों में सुधार आ जाता है या स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। और तब आप माहवारी या जन्म नियंत्रण समस्याओं से मुक्ति पा लेती हैं।

क्या रजोनिवृत्ति की पहचान के लिए जांच करवाने की जरूरत होती है?
आपको यह जांच करवाने की जरूरत नहीं होती कि आप पेरिमेनोपोज या मेनोपोज की स्थति में पहुंच गयीं हैं। आप या आपके डॉक्टर आपकी अनियिमित माहवारी या अन्य लक्षणों के आधार पर संभवताः यह बताने में समर्थ हो सकेंगे। यदि आपको बहुत ज्यादा माहवारी, अनियमित माहवारी होती है, तो आपका डॉक्टर रक्सस्राव की गंभीरता का पता लगाने के लिए परीक्षण कर सकते हैं। भारी मात्रा में रक्स्राव पेरीमेनोपोज के सामांय संकेत हो सकते हैं। लेकिन यह संक्रमण (इंफेक्शन), बीमारी या गर्भावस्था की समस्या के कारण भी हो सकता है।

शोषग्रस्त योनिशोध (एट्रोफिक वेजीनिटीज)
मुख्य कारण एस्ट्रोजन स्तरों का कम हो जाना है। हालांकि, रजोनिवृत्ति हो जाने वाली महिलाओं को इसकी संभावना ज्यादा होती है, लेकिन युवतियों को भी यह समस्या हो सकती है।
1. लक्षणों में योनि में सूजन, योनि में सूखापन, खुजली, जलन और योनि स्राव जोकि पतला और रंग में पीला हो सकता है। कभी-कभी स्राव में रक्त भी आ सकता है। अन्य समस्याओं में पेशाब की तत्कालिता/बारम्बारता, उठने, बैठने या कार्य करने में असमर्थता।
2. रजोनिवृत्ति प्राप्त महिलाएं, ऐसी महिलाएं जिनमें सर्जरी कर आॅवेरीज को निकाल दिया गया है, महिलाएं जोकि स्तन के कैंसर के भाग के तौर पर दवाएं या हाॅर्मोन ले रही हैं, एंडोमेट्रीयोसिस, फाइब्राॅअड्स, या बांझपन, ऐसी महिलाएं जोकि श्रोणि क्षेत्र (पेलविक एरिया) आदि में विकिरण इलाज प्राप्त कर रही हैं, को योनि स्राव की स्थिति विकसित हो जाने की संभावना बनी रहती है।
3. गंभीर तनाव, अवसाद या कठोर परिश्रम में लगी रहने वाली महिलाओं के एस्ट्रोजन स्तरों में कमी आ सकती है।
4. ऐसी महिलाएं जो हाल ही में प्रसव अवस्था से गुजरी हैं या जो स्तनपान करा रही हैं, में योनि स्राव की समस्या विकसित हो सकती है। क्योंकि ऐसे समय में एस्ट्रोजन स्तर कम हो जाता है।
5. लक्षणकारी प्रक्रिया मुख्यतौर से योनि की शारीरिक जांच और नैदानिक लक्षण प्रक्रियाएं शामिल।
6. समस्याग्रस्त जगह पर एस्ट्रोजन क्रीम का उपयोग, चिकनाईयुक्त (ल्ब्यु्रीकेटिंग) जैल का उपयोग या होर्मेनेस विस्थापन चिकित्सा सबसे प्रभावी विकल्प है।
7. अच्छी व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखना, वेजिनल स्प्रे, डाउचिंग, चिकनाईयुक्त (ल्ब्यु्रीकेटिंग) क्रीम जैल, असुरक्षित यौन सम्बन्ध से बचाव, दही के सेवन में वृद्धि, प्रभावी बचावकारी विधियां हैं।


गर्भाशय ग्रीवा या योनि कैंसर
योनि कैंसर शायद ही असामांय योनि स्राव का कारण होता है। योनि कैंसर में, योनि के ऊतकों में कैंसर (घातक) कोशिकाएं पायी जाती हैं। स्कवैमस सेल कैंसर, ग्रंथिकर्कटता, घातक मेलेनोमा और सार्कोमस योनि कैंसर के विभिन्न प्रकार हैं।
1. बुरी गंध के साथ निरंतर स्राव, रक्तस्राव या ऐसा स्राव जोकि माहवारी से सम्बन्धित न हो, पेशाब करने में दिक्कत या दर्द होना, यौन सम्बन्ध बनाते समय दर्द होना, या श्रोणि क्षेत्र में दर्द होना।
2. जोखिम घटक जोकि सरवाइकल कैंसर होने के खतरे बढा़ते हैं, में शामिल हैं उम्र, डाइथाइलस्टीबेस्ट्राॅल जैसी होर्मोनेस दवा का सेवन और ऐसी महिलाएं जोकि पहले से ही सरवाइकल कैंसर का इलाज करा रही हैं।
3. विभिन्न प्रकार की जांच जैसे श्रोणि (पेल्विक) जांच, पैप परीक्षण, कोल्पोस्कोपी और बायोप्सी से सरवाइकल या योनि कैंसर की पहचान करने में मदद मिलती है।
4. इलाज कैंसर की स्टेज, इसके आकार, रूप पर निर्भर करता है और रोगी की उम्र और स्वास्थ्य स्थिति पर भी विचार किया जाता है। सर्जरी, विकिरण चिकित्सा और कीमोथेरेपी सरवाइकल या वेजिनल कैंसर के प्रभावी विकल्प हैं।
5. एफडीए ने वर्ष 2006 में सरवाइकल कैंसर के बचाव के लिए एक नई वैक्सीन अनुमोदित की है।
6. अन्य बचावकारी विधियों में शामिल हैं सुरक्षित यौन-सम्बन्ध, सीमित यौन साथी, और नियमित पेप स्मियर परीक्षणों का चयन एवं वार्षिक श्रोणि परीक्षण।


अन्य संभावित कारणः
असामांय योनि स्राव हमेशा ही संक्रमण के कारण नहीं होता है। यह तब भी हो सकता है जब सामांय संतुलन बाधित हो जाए और स्राव की मात्रा और गुणवत्ता में बदलाव इन घटकों में से किसी एक के कारण हो।
1. टेम्पोंन को न बदलना और इसे 4-6 घण्टे से अधिक समय तक छोड़ देने के परिणाम स्वरूप योनि से निकलने वाले स्राव में दुर्गंध आ सकती है।
2. संक्रमित आईयूडी या अस्वीकृत आईयूडी से भी योनि से मवाद जैसा स्राव निकल सकता है।
3. परफ्यूम वाला साबुन, ल्ब्रीकेंट, सुगंधित उत्पाद, एंटीबायोटिक्स, तंग या नमी वाले कपड़े पहनना।
4. अत्यधिक डाउचिंग


डॉक्टर से मिलने का समय
संक्षिप्त समझ के लिए, सामान्य स्राव पर और परिवर्तन पर नज़र रखें। सम्बन्धित संकेतों एवं लक्षणों को लिख लें। यह आवश्यक है कि यदि असामान्य योनि स्राव से जुड़े लक्षणों के लिए जितना जल्दी संभव हो स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से मिल लिया जाए।

योनि को स्वस्थ रखने के आसान तरीके
निम्नलिखित ‘‘करें’’ और ‘‘न करें’’ को व्यवहार में लाएं और अपनी योनि को समान्य एवं स्वस्थ रखें
1. स्वच्छता बनाए रखना बुनियादी आवश्यकता है।
2. केवल सूती (काटन) अंडरवियर ही पहनें।
3. चुस्त कपड़े न पहनें।
4. स्वास्थ्यवर्धक भोजन करें।
5. चीनी का काम से कम उपयोग करें।
6. दही का अधिक से अधिक सेवन करें।
7. योनि डाउच का उपयोग करने से बचें।
8. योनि की चिकनाई हेतु पेट्रोलियम जैली या तेल का इस्तेमाल न करें।
9. सुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाएं।
10. वाशरूम का उपयोग करने के बाद, आगे से पीछे की ओर साफ करें।
11. डियोडरेंट और फेमिनिन स्प्रे का इस्तेमाल न करें।
12. गैर-सुगंधित टोइलेट पेपर का इस्तेमाल करें।


माहवारी (पीरियड) न होना
यदि आपको इस माह मासिक धर्म चक्र नहीं हुआ है, तो इसका अर्थ है कि आप गर्भवती हैं। यदि आपको मासिक धर्म चक्र नहीं होता है और आपने यौन सम्बन्ध बनाए हैं, तो यह पता लगाने के लिए कि कहीं आप गर्भवती तो नहीं हैं, गर्भावस्था की जांच (प्रेगनेंसी टेस्ट) अवश्य कराएं। डॉ. केसिडी कहती हैं, ‘‘यदि आपको दो या तीन मासिक धर्म चक्र नहीं होते हैं और आप गर्भवती नहीं हैं, तो आपको चिकित्सीय सलाह लेनी चाहिए।’’ अधिकांश महिलाओं के लिए माहवारी न होना, होरमोन की गड़बड़ी के कारण हो सकता है, और आपको मदद की जरूरत हो सकती है। कुछ महिलाओं में माहवारी न होने के अन्य कारणों में शामिल हैं:
1. तनाव
2. अचानक वजन कम हो जाना
3. खेलकूदों में ज्यादा भागीदारी
4. गर्भनिरोधक गोली लेना

यदि आप काफी लम्बे समय से गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन कर रही हैं, तो कभी-कभी आपकी माहवारी बंद हो सकती है। यह महिलाओं के लिए कोई असामान्य बात नहीं है, रजोनिवृत्ति की उम्र के आसपास, माहवारी न होना की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि डिबोत्सर्जन (आव्युलेशन) कम नियमित हो जाता है। रजोनिवृत्ति की औसत उम्र 50 से 55 है, लेकिन कभी-कभी महिलाओं को अपनी 20 से 30 वर्ष की उम्र में ही रजोनिवृत्ति हो सकती है। ऐसी महिलाएं जिन्हें 45 वर्ष की उम्र से पहले माहवारी रूक जाती है या ऐसी महिलाएं जिन्हें 55 वर्ष की उम्र के बाद भी रक्तस्राव हो रहा है, को चिकित्सीय मदद लेनी चाहिए।